मंगळवार, ७ फेब्रुवारी, २०१७

Famous 10 Indian fort

1. कुम्भलगढ़ का किला,  राजस्थान (Kumbhalgarh Fort, Rajasthan) :Kumbhalgarh Fort, Rajasthan, History, Story & Information in Hindi
राजस्थान के राजसमन्द में स्तिथ कुम्भलगढ़ फोर्ट का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था। इस फोर्ट की दो ख़ास विशेषताए है।  पहली इस फोर्ट की दीवार विशव की दूसरी सबसे बड़ी दीवार है जो की 36 किलो मीटर लम्बी है तथा 15 फ़ीट चौड़ी है, इतनी चौड़ी की इस पर एक साथ पांच घोड़े दौड़ सकते है। दूसरी इस दुर्ग के अंदर 360 से ज्यादा मंदिर हैं जिनमे से 300 प्राचीन जैन मंदिर तथा बाकि हिन्दू मंदिर हैं। यह एक अभेध किला है जिसे दुश्मन कभी अपने बल पर नहीं जीत पाया। इस दुर्ग में ऊँचे स्थानों पर महल,मंदिर व आवासीय इमारते बनायीं गई और समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया गया वही ढलान वाले भागो का उपयोग जलाशयों के लिए कर इस दुर्ग को यथासंभव स्वाबलंबी बनाया गया।
2. मेहरानगढ़ किला, राजस्थान (Mehrangarh Fort, Rajashthan) :Mehrangarh Fort, Rajashthan, History, Story & Information in Hindi
मेहरानगढ़ किला राजस्थान के जोधपुर शहर में स्थित है। यह 500 साल से भी ज़्यादा पुराना और सबसे बड़ा किला है। यह किला काफी ऊंचाई पर स्थित है। इसे राव जोधा द्वारा बनवाया गया था। इस किले में सात गेट हैं। प्रत्येक गेट राजा के किसी युद्ध में जीतने पर स्मारक के रूप में बनवाया गया था। इस किले में जायापॉल गेट राजा मानसिंह ने बनवाया था। किले के अंदर मोती महल, शीश महल जैसे भवनों को बहुत ही ख़ूबसूरती से सजाया गया है। चामुंडा देवी का मंदिर और म्यूज़ियम इस किले के अंदर ही हैं। इस किले का म्यूज़ियम राजस्थान का सबसे अच्छा म्यूज़ियम माना जाता है।
3. जैसलमेर किला,राजस्थान (Jaisalmer Fort, Rajasthan) :Jaisalmer Fort, Rajasthan, History, Story & Information in Hindi
यह दुनिया का सबसे बड़े किलों में एक है और राजस्थान में स्थित है। इसे रावल जैसवाल ने बनवाया था। थार रेगिस्तान के बीचोंबीच इस किले को बनवाया गया था। जैसलमेर किले को सोनार किले के नाम से भी जाना जाता है। गोल्डन किला शहर से 76 किमी दूर त्रिकुटा पहाड़ी पर त्रिकोण आकार में बनाया गया है। इस किले को भारत का दूसरा सबसे पुराना किला माना जाता है। किले में सबसे ज़्यादा आकर्षक जैन मंदिर, रॉयल पैलेस और बड़े दरवाजे हैं। जैसलमेर रेगिस्तान का शहर है जो त्रिकुटा पहाड़ी, हवेलियों, और झीलों के लिए फेमस है।
4. चित्तौड़गढ़ किला, राजस्थान (Chittorgarh Fort, Rajasthan) :Chittorgarh Fort, Rajasthan, History, Story & Information in Hindi
चित्तौडगढ़ को किलों का शहर कहा जाता है। यहां पर आपको भारत के सबसे पुराने और आकर्षक किले देखने को मिलेंगे। उन्हीं किलों में से एक चित्तौड़ का किला है। यह किला बेराच नदी के किनारे बनाया गया है। नदी के किनारे स्थित होने के कारण इसे पानी का किला भी कहा जाता है, क्योंकि इस किले में 84 पानी की जगहें हैं, जिनमें से 24 आज के समय में सही स्थिति में हैं। यह किला महाराणा प्रताप की बहादुरी की गवाही देता है। राजस्थान में राजपूत फेस्टिवल मनाया जाता है, जिसे जौहर मेला नाम से जाना जाता है। चित्तौडगढ़ के किले में दो फेमस जलाशय हैं, जो विजय स्तंभ और राणा कुंभा के नाम से प्रसिद्ध हैं। इस किले के अलावा यहां पर आपको अम्बर किला, जयगढ़ किला और तारागढ़ किला है, जिन्हें देखने के लिए पर्यटकों का तांता लगा रहता है।
5. लाल किला ,दिल्ली  (Lal Kila, Delhi) :Lal Kila, Delhi, History, Story & Information in Hindi
भारत का सबसे आकर्षक और फेमस किलों में लाल किला का नाम आता है। यह किला दिल्ली में स्थित है। इसे मुगल शासक शाहजहां ने बनवाया था। इस किले की दीवारें लाल पत्थर की हैं। यही वजह है कि इसे लाल किला नाम से जाना जाता है। इस किले के अंदर देखने लायक कई चीजें हैं। मोती मस्जिद, दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास देखने के लिए काफी लोग रोज ही आते हैं। यह किला यमुना नदी के किनारे है। इस किले में आपको पुरातात्विक म्यूज़ियम और युद्ध से जुड़ी जानकारी देने वाला म्यूज़ियम भी बनाया गया है। यह भारत के सबसे महत्वपूर्ण धरोहरों में से एक है, जहां से देश के प्रधानमंत्री देश के लोगों को संदेश देते है औैर स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराते हैं।
6. लाल किला,आगरा (Lal Qila, Agra) :Lal Qila, Agra, History, Story & Information in Hindi
उत्तर प्रदेश के ताज महल से 2 किमी की दूरी पर लाल किला बनाया गया है। इस किले को सिकंदर लोधी ने आगरा में रहने के लिए बनवाया था। इस किले को यूनेस्को विरासत में दर्जा हासिल है। यह यमुना नदी के किनारे बनाया गया है। उत्तर प्रदेश के बेस्ट टूरिस्ट प्लेस में आगरा का यह लाल किला आता है। इस किले के अलावा झांसी किला भी अपनी कलाकारी के लिए फेमस है। झांसी का किला महारानी लक्ष्मीबाई का किला है।
7. ग्वालियर किला, मध्य प्रदेश (Gwalior Fort, Madhya Pradesh) :Gwalior Fort, Madhya Pradesh, History, Story & Information in Hindi
ग्वालियर का किला राणा मानसिंह तोमर ने मध्य प्रदेश में बनवाया था। यह किला ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है। इस किले के आकर्षण का केंद्र सास-बहू मंदिर और गुजारी महल है। इसमें मंदिर और म्यूज़ियम भी है। यह राजसी स्मारक भारत के सबसे बड़े किलों में से एक है। इस किले के महत्व को याद रखने के लिए इस पर डाक टिकट भी जारी किया गया है। यह मध्य प्रदेश के सबसे पसंदीदा टूरिस्ट प्लेसेस में से एक है।
8. गोलकोंडा किला, हैदराबाद (Golconda Fort. Hyderabad) :Golconda Fort. Hyderabad, History, Story & Information in Hindi
आंध्र प्रदेश के हैदराबाद शहर में गोलकोंडा किला काकतिया राजा ने बनवाया था। यह किला अपने समृद्ध इतिहास और राजसी भव्य संरचना के लिए जाना जाता है। गोलकुंडा कोल्लूर झील के पास हीरे की खान के लिए भी फेमस है। इस किले को हैदराबाद के सात आश्चर्य के रूप में जाना जाता है। इस किले के अलावा यहां पर आपको चारमीनार, बिरला मंदिर, रामोजी फिल्म सिटी, हुसैन सागर, सालारजंग म्यूज़ियम और मक्का मस्जिद जैसी कई दर्शनीय जगहें हैं।
9. कांगड़ा किला,हिमाचल (Kangra Fort, Himachal) :Kangra Fort, Himachal, History, Story & Information in Hindi
हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में बाणगंगा और माझी नदियों के संगम पर कांगड़ा के शाही परिवार ने इस किले का निर्माण किया था। यह किला दुनिया के सबसे पुराने किलो में से एक है। यह हिमालय का सबसे बड़ा किला और इंडिया का सबसे पुराना किला है। इस किले में वज्रेश्वरी मंदिर है, जिसका काफी महत्व है। किलों और मंदिरों के अलावा हिमाचल अपनी खूबसूरती के लिए भी फेमस है। कांगड़ा शहर की खूबसूरती देखने के लिए आप सड़क रास्ते से यात्रा करें। हिमाचल की काफी सारी इमारतें धर्मशाला के पास भी हैं।

10. पन्हाला किला, महाराष्ट्र (Panhala Fort, Maharashtra) :Panhala Fort, Maharashtra, History, Story & Information in Hindi
महाराष्ट्र में कोल्हापुर के पास सहयाद्री पर्वत में इस किले को बनाया गया है। यह किला मराठा शासकों की याद दिलाता है। महाराष्ट्र में ज़्यादातर किले शिवाजी के समय में बनाए गए थे। महाराष्ट्र के पुनडार किला, बहादुरगढ़ किला, अहमदगढ़ किला और रत्नगढ़ किले में आप ट्रैकिंग भी कर सकते हैं। ये किले ट्रैकिंग के लिए बेहद फेमस हैं। महाराष्ट्र का मुरुद जिला जंजीरा और खूबसूरत बीच के लिए फेमस है।

सोमवार, ६ फेब्रुवारी, २०१७

सिधुदुर्ग -एक ऐतिहासिक किल्ला



        सिंधुदुर्ग नाम मूल रूप से मराठी शब्द है जिसका मतलब है महासागर पर निर्मित किला या महासागर किला। शायद इस प्रतिष्ठित निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सिंधुदुर्ग किले को राजा शिवाजी द्वारा 1664 से 1667 तक, 3 साल के भीतर बनवाया गया। आज 'कर्टे द्वीप' पर खड़े इस विशाल किले का निर्माण करने के लिए गोवा से 100 पुर्तगाली वास्तुविज्ञ और 3000 मजबूत कारीगरों को तैनात किया गया था।
      हिरोजी इन्दुलकर, उस युग के एक प्रख्यात वास्तुकार, ने निर्माण की देखरेख की और यह माना जाता है कि आधार बनाने के लिए और किले के शिलान्यास के लिए लोहे के 4000 टीले को पिघलाया गया था। किला 50 एकड़ भूमि में फैला हुआ है और 9.2 मीटर ऊंचे और 4 किमी लंबी किले की दीवार के साथ 42 बुर्ज इसकी शोभा बढ़ाते हैं। किले में हनुमान, जरीमरी और 'देवी भवानी' मंदिर स्थित हैं।
      सिंधुदुर्ग नाम सिंधु, जिसका मतलब समुद्र और दुर्ग, जिसका मतलब किला है, से मिलकर बना है। यह महान मराठा योद्धा राजा  छत्रपति शिवाजी द्वारा बनाया गया था। उन्होने इस चट्टानी द्वीप को इसलिये चुना क्योंकि यह विदेशी बलों से निपटने के सामरिक उद्देश्य के अनुरूप था  और मुरुद- जंजीरा के सिद्धी पर नजर रखने में सहायक था। इस किले की सुंदरता है कि यह इस तरह से बनाया गया है कि यह अरब सागर से आ रहे दुश्मन द्वारा आसानी से नहीं देखा जा सकता है।
     यहाँ के प्रमुख आकर्षण समुद्र तटों के साथ-साथ कई किले हैं। पूर्व में, वीं सदी के आसपास 17 निर्मित, सिंधुदुर्ग महाराष्ट्र के सबसे महत्वपूर्ण समुद्र किला था। सिंधुदुर्ग किले में 42 बुर्ज के साथ टेढ़ी-मेढ़ी दीवार है। निर्माण सामग्री में ही करीब 73,000 किलो लोहा शामिल हैं। एक समय, जब हिंदू ग्रंथों द्वारा समुद्र से यात्रा पवित्र प्रतिबंधित किया गया था, तब बड़े पैमाने पर यह निर्माण मराठा राजा के क्रांतिकारी मानसिकता का प्रतिनिधित्व करता है। आज भी, मराठा महिमा का अनुभव करने के लिये दुनिया भर से पर्यटक पद्मागढ़ के किले की यात्रा करते हैं। देवबाग का विजयदुर्ग  किला, तिलारी बांध, नवदुर्गा मंदिर इस क्षेत्र में अन्य आकर्षण है जिन्हे देखने से चूकना नहीं चाहिए। सिन्धुदुर्ग में भारत का सबसे पुराना साईं बाबा का मन्दिर भी है।

सिंधुदुर्ग - इतिहास प्रकृति , और सब कुछ अच्छा

ऊंचे पहाड़ों, समुंदर का किनारा और एक शानदार दृश्यों के साथ संपन्न, यह जगह अलफांसो आम, काजू, जामुन आदि के लिए लोकप्रिय है। एक साफ दिन में लगभग 20 फीट की गहराई तक स्पष्ट समुद्र देखा जा सकता है। भारतीय और विदेशी पर्यटकों के लिए यह क्षेत्र बहुतकुछ पेश करता है और द्वीप के बाहरी इलाके में स्कूबा डाइविंग और स्नार्केलिंग के द्वारा मूँगे की चट्टानों दृश्य से प्यार हो जाता है।
पूरा जिला क्षेत्र के घने वन से आच्छादित है, वनस्पतियों और पशुवर्ग की बहुत सी प्रजातियां किसी भी प्रकृति प्रेमी को खुश करने के लिए काफी हैं। तेंदुआ, जंगली सूअर, नेवला, जंगली खरगोश, हाथी, जंगली भैंस और मकाक बंदर जैसे जंगली जानवरों यहां पाये जाते हैं।
यह क्षेत्र अपनी अनूठी मालवानी भोजन के लिए प्रसिद्ध है। समान रूप से घरेलू अथवा विदेशी पर्यटकों को यहाँ के खाद्य व्यंजनों की शानदार पेशकश, विशेष रूप से मछली और झींगे को स्थानीय स्वाद में चखने की कोशिश करनी चाहिए।

सिंधुदुर्ग एक रमणीय स्थल क्यों माना जाता है ?

सिंधुदुर्ग के क्षेत्र में नम जलवायु अनुभव होता है। ग्रीष्मकाल आमतौर पर गर्म रहते हैं बल्कि यात्रियों के लिए सर्दियों के मौसम के दौरान यात्रा की सलाह दी जाती है, विशेष रूप से दिसंबर और जनवरी में, जब मौसम बहुत ठंडा और सुखद होता है।
मुंबई से 400 किलोमीटर की दूरी पर, सिंधुदुर्ग वायुमार्ग, सड़क और रेल द्वारा सुलभ है। यहाँ तक पहुँचने का लिये महाराष्ट्र के शहरों तथा महाराष्ट्र के बाहर से काफी संख्या में बसें उपलब्ध हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग 17 इस क्षेत्र से गुजरता है।
यहाँ मुंबई, गोवा और मंगलौर जैसे प्रमुख स्थानों से ट्रेन या बस से पहुँचा जा सकता है। गोवा हवाई अड्डा, 80 किमी की दूरी पर, सिंधुदुर्ग के लिए निकटतम हवाई अड्डा है। सुंदर समुंदर के किनारे पर चलना, ऐतिहासिक भव्यता का पता लगाना, या बस आराम करना - सिंधुदुर्ग में हर प्रकार के यात्री की लिए कुछ अवश्य है। इस किले में संग्रहित यादों को आप देखना मत भूलियेगा

रविवार, २९ जानेवारी, २०१७

Julius Robert Oppenheimer


जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर (Julius Robert Oppenheimer) (२२ अप्रैल १९०४ - १८ फ़रवरी १९६७) एक सैद्धान्तिक भौतिकविद् एवं अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (बर्कली) में भौतिकी के प्राध्यापक थे। लेकिन वे परमाण बम के जनक के रूप में अधिक विख्यात हैं। वे द्वितीय विश्वयुद्ध के समय परमाणु बम के निर्माण के लिये आरम्भ की गयी मैनहट्टन परियोजना के वैज्ञानिक निदेशक थे। न्यू मैक्सिको में जब ट्रिनिटी टेस्ट हा और इनकी टीम ने पहला परमाणु परीक्षण किया तो उनके मुंह से भगवद गीता का एक श्लोक निकल पड़ा।
दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता।
यदि भाः सदृशी सा स्याद् भासस्तस्य महात्मनः॥१२॥
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।...॥३२॥
     

मैनहट्टन परियोजना


युद्ध की समाप्ति पर उन्हें युनाइटेड स्टेट्स एटॉमिक इनर्जी कमीशन का मुख्य सलाहकार बनाया गया।
सापेक्षता के सिद्धांत के द्वारा परमाणु उर्जा की थ्योरी विकसित करने का श्रेय आइंस्टाइन को जाता है जिसके आधार पर तकरीबन चालीस साल बाद परमाणु बम बनाया गया। १९३८ तक यह थ्योरी थ्योरी ही रही। उस साल तीन जर्मन वैज्ञानिकों ने एक खोज की। ओट्टो हान, लीजे माइत्नेर और फ्रित्ज़ स्ट्रास्मान ने पाया कि यदि यूरेनियम पर न्युट्रान बरसाया जाए तो उससे बेरियम और क्रिप्टन उत्सर्जित होते हैं और इस प्रक्रिया से बहुत गर्मी पैदा होती है जिसे न्यूक्लिअर फ़िज़न कहते हैं। तकरीबन इसी वक़्त डेनिश मूळ के वैज्ञानिक नील्स हेनरिक डेविड बोअर ने महसूस किया कि इस प्रकिया के द्वारा सामरिक हथियार विकसित किया जा सकता है। अगले साल १९३९ में नील्स अमेरिका चले गए। उनका उद्देश्य अमेरिका को इस तरह के हथियार पर काम करने के लिए चेताना था और वे चाहते थे अमेरिका इसपर जर्मनी से पहले सफलता प्राप्त करे। जिस ओर जर्मनी दूसरे विश्व युद्ध में जा रहा था यह कदम ज़रूरी भी लग रहा था।

नील्स ने अमेरिका पहुँच कर हंगेरियन मूल के भौतिकशास्त्री लियो स्जिलार्ड से संपर्क साधा और उन्हें इस बारे में बताया। लियो ने तत्काल आइंस्टाइन से बात की जोकि अमेरिका में ही थे। आइंस्टाइन के सिद्धांत ने ही न्यूक्लिअर फ़िज़न के दरवाज़े खोले थे और वे विश्व के निर्विवाद प्रतिष्ठित वैज्ञानिक थे। आइंस्टाइन ने राष्ट्रपति रूज़वेल्ट को २ अगस्त १९३९ को वह मशहूर पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अमेरिका को जर्मनी द्वारा इस ओर प्रयोग करने के बाबत लिखा और चेताया कि नाज़ियों द्वारा इस तरह का अस्त्र बनाने में सफलता पाने से विश्व भर के लिए क्या खतरा हो सकता है। हालाँकि बाद में उन्होंने अपने इस पत्र पर अफ़सोस व्यक्त किया मगर भविष्य में क्या होगा यह उस समय कहना सम्भव नहीं था।

असीमित संभावनाओं वाले इस संभावित अस्त्र के निर्माण को गोपनीय रखना आवश्यक था। राष्ट्रपति ने परमाणु बम को विकसित करने का काम अमेरिकी सेना के मैनहैटन विभाग को सौंपा जिसकी वजह से इस परम गोपनीय प्रोजेक्ट को मैनहैटन प्रोजेक्ट कहा जाता था। इस प्रोजेक्ट का सञ्चालन करने का जिम्मा मेजर जनरल लेसली ग्रोव्स को दिया गया और इसके निर्माण से चार यूरोपी प्रवासी जुड़े। इस प्रोजेक्ट की गोपनीयता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिकी सरकार में इसके बारे में लगभग कोई नहीं जानता था। यहाँ तक कि रूज़वेल्ट की आकस्मिक मृत्यु होने पर जब ट्रूमन राष्ट्रपति बने तो उन्हें भी इसकी कोई जानकारी नहीं थी। मगर साथ ही यह भी सच है कि कुछ लोगों ने सोवियत, जोकि उस समय अमेरिका का युद्ध में सहयोगी था, को इस प्रोजेक्ट के कुछ गोपनीय दस्तावेज उपलब्ध कराये थे।

अब सबसे पहले एक न्यूक्लिअर रिएक्टर बनाने की आवश्यकता थी जिसके द्वारा चेन-रिअक्शन किया जा सके। यह काम शिकागो विश्वविद्यालय में इटालियन भौतिकशास्त्री एनरीको फ़ेर्मी के निर्देशन में अंजाम दिया गया। ये वही फ़ेर्मी थे जिन्हें १९३८ में न्यूटरोन फ़िज़िक्स में शोध के लिए नोबेल मिला था। शिकागो रिएक्टर में ५० टन यूरेनियम, केडमियम कंट्रोल रौड्स, ५०० टन ग्रेफाईट इस्तेमाल किया गया। चेन-रिअक्शन कराने में अगले तीन साल लगे और २ दिसम्बर, १९४२ को इसमें सफलता पायी गई। मेजर जनरल ग्रोव्स ने मैनहैटन प्रोजेक्ट के लिए गुप्त रूप से तीन केन्द्र स्थापित किए। पहला केन्द्र टेनेसी में बनाया गया जहाँ यूरेनियम-२३५ फेक्ट्री लगाई गई। इसके लिए भारी मात्रा में बिजली की ज़रूरत थी जो टेनेसी में नवनिर्मित हाइड्रो-इलैक्ट्रिक बांधों से उपलब्ध कराई गई। वाशिंगटन में प्लूटोनियम-२३९ केन्द्र स्थापित किया गया। तीसरा केन्द्र असल में एक प्रयोगशाला था जोकि न्यू मेक्सिको के पास लोस आलामोस में थी। यही वह जगह थी जहाँ परमाणु बम वास्तव में बनाया गया। फ़ेर्मी के साथ हंगेरियन भौतिकशास्त्री लियो स्जिलार्ड भी इस प्रोजेक्ट से जुड़ गए। ये वही लियो स्जिलार्ड थे जिन्होंने आइंस्टाइन से रूज़वेल्ट को पत्र लिखने के लिए कहा था। जिस समय फ़ेर्मी शिकागो में काम कर रहे थे लगभग उसी समय रॉबर्ट ओपनहाइमर और उनके साथ कुछ और वैज्ञानिक केलिफोर्निया विश्वविद्यालय में न्यूक्लिअर फ़िज़न पर काम कर रहे थे। उन्होंने पाया कि यूरेनियम-२३५ के अलावा प्लूटोनियम-२३९ से भी न्यूक्लिअर फ़िज़न करना सम्भव है। इसी के आधार पर जनरल ग्रोव्स ने तीन केन्द्र स्थापित किए थे। अब रॉबर्ट ओपनहाइमर भी मैनहैटन प्रोजेक्ट से जुड़ चुके थे। चौथे वैज्ञानिक आर्थर कोम्प्टन थे जो इस प्रोजेक्ट से जुड़े।

पहला परमाणु हथियार, जोकि एक यूरेनियम-२३५ बम था, का सफल प्रयोग १६ जुलाई १९४५ में न्यू मेक्सिको के रेगिस्तान में किया गया। इसे कोड दिया गया - ट्रिनिटी। इसके समानांतर अमेरिकी वायुसेना ने एक संगठन स्थापित किया जिसे ५०९ कोम्पोसिट ग्रुप नाम दिया गया। इस ग्रुप को अज्ञात विशाल बमों को गिराने की ट्रेनिंग दी गई और इस काम के लिए बोइंग बी-२९ बोम्बर्स का इस्तेमाल किया गया। १९४५ के मध्य तक विश्व भर में सैनिक और राजनैतिक माहौल तेजी से बदल चुका था। राष्ट्रपति रूज़वेल्ट की अप्रैल में मृत्यु हो चुकी थी और मई में जर्मनी आत्मसमर्पण कर चुका था। यूरोप में विश्वयुद्ध ख़त्म हो चुका था और मित्र देशों ने अपना ध्यान अबतक पूरी तरह से जापान पर केंद्रित कर लिया था। मैनहैटन प्रोजेक्ट से जुड़े लगभग सभी वैज्ञानिक इसी वजह से इससे जुड़े थे ताकि जर्मनी के इस ओर सफलता हासिल करने से पहले अमेरिका या मित्र देश इसपर काम शुरू कर दें मगर जापान पर इसका इस्तेमाल हो वे इसके हिमायती नहीं थे। पर अब बात उनके चुनाव की नहीं रह गई थी। इवो जिमा और ओकिनावा में चल रहे युद्ध में मित्र देश जापान द्वारा बुरी तरह पछाडे जा चुके थे। मित्र देशों का अंदाजा था कि यदि युद्ध जापान की धरती पर इसी तरह चलता है तो लगभग दस लाख जाने जा सकती हैं और इनमे से ज्यादातर अमेरिकियों के होने की सम्भावना ट्रूमन को यह मंज़ूर नहीं था। उन्होंने अपने केबिनेट और उच्च सैनिक सलाहकारों के साथ मीटिंग के बाद तय किया कि जापान के ख़िलाफ़ दो परमाणु बमों का प्रयोग किया जाए।

पहला बम, जिसे "लिटिल बॉय" के नाम से जाना जाता है, वास्तव में लिटिल नहीं था। उसका वज़न ९,७०० पाउंड था। यह एक यूरेनियम बम था और ६ अगस्त १९४५ को इसे हिरोशिमा पर गिराया गया। इसके तीन दिन बाद अगला बम, जोकि एक प्लूटोनियम बम था, नागासाकी पर गिराया गया। इस बम का वज़न तकरीबन दस हज़ार पाउंड था. हिरोशिमा में परमाणु बम के हमले से अस्सी हज़ार लोग तो तत्काल मारे गए और नागासाकी में गिराए गए परमाणु बम "फैट मैन" से चालीस हज़ार लोग मारे गए। आने वाले दिनों में मरने वालों की संख्या लगभग दुगनी हो गई। जापान को लगा कि अमेरिका अगर चाहे तो ऐसे कई और परमाणु हमले जापान पर कर सकता है जोकि हालांकि सही नहीं था मगर अंततः जापान ने १५ अगस्त को मित्र देशों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। अमेरिका ने पूरी कोशिश की कि कोई भी अन्य देश परमाणु हथियार बनाने या प्राप्त करने में सफल न हो सके। अमेरिका को अपने प्रयासों में पहला झटका १९४९ में लगा जब अमेरिका से चोरी से प्राप्त दस्तावेज़ों के आधार पर सोवियत ने भी परमाणु बम बना लिया। इस तरह अमेरिका का वर्चस्व समाप्त हो गया और दुनिया प्रत्यक्ष रूप से दो धुरियों में बंट गई। इसके पीछे अमेरिका की अपना एकाधिकार बनाये रखने की कामना काम कर रही थी या उसे इस विनाशक हथियार के ग़लत इस्तेमाल की चिंता खा रही थी यह बहस का विषय हो सकता है। विश्व का अग्रणी बनकर वह कूटनीतिक और अगर ज़रूरत पड़े तो शक्ति द्वारा यह कोशिश करता आया है कि कोई भी देश परमाणु शक्ति संपन्न न बन सके किंतु ज्ञान और विज्ञान पर एकाधिकार बनाए रखने की मंशा इस युग में सम्भव नहीं है अमेरिका को यह समझना चाहिए। वैसे भी एकमात्र परमाणु हमला करने वाले देश को नैतिक स्तर पर भी यह अधिकार नहीं कि वह परमाणु शक्ति संपन्न देश का अपना स्टेटस बरकरार रखते हुए किसी और को यह साधन प्राप्त करने से रोके।

James Clerk Maxwell


जेम्स क्लार्क मैक्सवेल (James Clerk Maxwell) स्कॉटलैण्ड (यूके) के एक विख्यात गणितज्ञ एवं भौतिक वैज्ञानिक थे। इन्होंने 1865 ई. में विद्युत चुम्बकीय सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जिससे रेडियो और टेलीविजन का आविष्कार सम्भव हो सका। क्लासिकल विद्युत चुंबकीय सिद्धांत, चुंबकत्व और प्रकाशिकी के क्षेत्र में दिए गए सिद्धांतों के लिए उन्हें प्रमुखता से याद किया जाता है। मैक्सवेल ने क्रांतिकारी विचार रखा कि प्रकाश विद्युत चुंबकीय तरंग है और यह माध्यम से स्वतंत्र है। स्कॉटिश भौतिकविद जेम्स क्लार्क मैक्सवेल ने इस सिद्धांत से क्रांति ला दी। न्यूटन के बाद विद्युतचुंबकत्व के क्षेत्र में मैक्सवेल द्वारा किए गए कार्य को भौतिकी के क्षेत्र में दूसरा सबसे बड़ा एकीकरण कार्य माना जाता है। यह कई क्षेत्रों से जुड़ा है।
          मैक्सवेल का जन्म एडिनर्बग (स्कॉटलैण्ड) में 13 नवम्बर सन् 1831 के हुआ था। आपने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय तथा केंब्रिज में शिक्षा पाई। 1856 से 1860 तक आप ऐबर्डीनके मार्शल कालेज में प्राकृतिक दर्शन (Naturalphilosophy) के प्रोफेसर रहे। सन् 1860 से 68 तक आप लंदन के किंग कालेज में भौतिकी और खगोलमिति के प्रोफेसर रहे। 1868 ई0 आपने अवकाश ग्रहण किया, किंतु 1871 में आपको पुन: केंब्रिज में प्रायोगिक भौतिकी विभाग के अध्यक्ष का भार सौंपा गया। आपके निर्देशन में इन्हीं दिनों सुविख्यात कैंबेंडिश प्रयोगशाला की रूपपरेखा निर्धारित की गई। आपकी मृत्यु सन् 1879 में हुई।
        18 वर्ष की अवस्था में ही आपने गिडनबर्ग की रॉयल सोसायटी के समक्ष प्रत्यास्थता (elasticity) वाले ठोस पिंडों के संतुलन पर अपना निबंध प्रस्तुत किया था। इसी के आधार पर आपने श्यानतावाले (viscous) द्रव पर स्पर्शरेखीय प्रतिबल (tangential stress) के प्रभाव से क्षण मात्र के लिये उत्पन्न होनेवाले दुहरे अपवर्तन की खोज की। सन् 1859 में आपने शनि के वलय के स्थायित्व पर एक गवेषणपूर्ण निबंध प्रस्तुत किया। गैस के गतिज सिद्धान्त (Kinetic Ttheory) पर महत्वपूर्ण शोधकार्य करके, गैस के अणुओं के वेग के विस्तरण के लिये आपने सूत्र प्राप्त किया, जो "मैक्सवेल के नियम" के नाम से जाना जाता है। मैक्सवेल ने विशेष महत्व के अनुसंधान विद्युत् के क्षेत्र में किए। गणित के समीकरणों द्वारा आपने दिखाया कि सभी विद्युत् और चुंबकीय क्रियाएँ भौतिक माध्यम के प्रतिबल तथा उसकी गति द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं। इन्होंने यह भी बतलाया कि विद्युच्चुंबकीय तरंगें तथा प्रकाशतरंगें एक से ही माध्यम में बनती हैं, अत: इनका वेग ही उस निष्पत्ति के बराबर होना चाहिए जो विद्युत् परिमाण की विद्युतचुंबकीय इकाई तथा उसकी स्थित विद्युत् इकाई के बीच वर्तमान है। निस्संदेह प्रयोग की कसौटी पर मैक्सवेल क यह निष्कर्ष पूर्णतया खरा उतरा।
मैक्सवेल ने सबसे पहले प्रयोग के माध्यम से बताया कि विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र अंतरिक्ष में तरंगों के रूप में प्रकाश की गति से चलते हैं। वर्ष 1864 में मैक्सवेल ने विद्युत चुंबकत्व की गति का सिद्धांत दिया और पहली बार बताया कि प्रकाश वास्तव में उसी माध्यम में तरंग है जिससे विद्युत और चुंबकीय तरंग पैदा होती है।
उन्होंने विद्युत चुंबकत्व के क्षेत्र में एकीकृत मॉडल दिया, जिसे भौतिकी में एक बड़ा योगदान माना जाता है। मैक्सवेल ने मैक्सवेल वितरण का विकास किया जिसे गैसों की गतिज उर्जा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू माना जाता है।

शनिवार, २८ जानेवारी, २०१७

Dr.Jayant Vishnu NarliKar


जयन्त विष्णु नार्लीकर (मराठी: जयन्त विष्णु नारळीकर ; जन्म 19 जुलाई 1938) प्रसिद्ध भारतीय भौतिकीय वैज्ञानिक हैं जिन्होंने विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए अंग्रेजीहिन्दी और मराठी में अनेक पुस्तकें लिखी हैं। ये ब्रह्माण्ड के स्थिर अवस्था सिद्धान्त के विशेषज्ञ हैं और फ्रेड हॉयल के साथ भौतिकी के हॉयल-नार्लीकर सिद्धान्त के प्रतिपादक हैं।

परिचय
जयन्त विष्णु नार्लीकर का जन्म 19 जुलाई 1938 को कोल्हापुर महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता विष्णु वासुदेव नार्लीकर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में गणित के अध्यापक थे तथा माँ संस्कृत की विदुषी थीं। नार्लीकर की प्रारम्भिक शिक्षा वाराणसी में हुई। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि लेने के बाद वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गये। उन्होने कैम्ब्रिज से गणित की उपाधि ली और खगोल-शास्त्र एवं खगोल-भौतिकी में दक्षता प्राप्त की।
आजकल यह माना जाता है कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति विशाल विस्फोट (Big Bang) के द्वारा हुई थी पर इसके साथ साथ ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में एक और सिद्धान्त प्रतिपादित है, जिसका नाम स्थायी अवस्था सिद्धान्त (Steady State Theory) है। इस सिद्धान्त के जनक फ्रेड हॉयल हैं। अपने इंग्लैंड के प्रवास के दौरान, नार्लीकर ने इस सिद्धान्त पर फ्रेड हॉयल के साथ काम किया। इसके साथ ही उन्होंने आइंस्टीन के आपेक्षिकता सिद्धान्त और माक सिद्धान्त को मिलाते हुए हॉयल-नार्लीकर सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।

1970 के दशक में नार्लीकर भारतवर्ष वापस लौट आये और टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान में कार्य करने लगे। 1988 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के द्वारा उन्हे खगोलशास्त्र एवं खगोलभौतिकी अन्तरविश्वविद्यालय केन्द्र स्थापित करने का कार्य सौपा गया। उन्होने यहाँ से 2003 में अवकाश ग्रहण कर लिया। अब वे वहीं प्रतिष्ठित अध्यापक हैं।

शुक्रवार, २७ जानेवारी, २०१७

Film Star Amitabh Bachchan


हिन्दी सिनेमा में चार दशकों से ज्यादा का वक्त बिता चुके अमिताभ बच्चन को उनकी फिल्मों से ‘एंग्री यंग मैन’ की उपाधि प्राप्त है। वे हिन्दी सिनेमा के सबसे बड़े और सबसे प्रभावशाली अभिनेता माने जाते हैं। उन्हें लोग ‘सदी के महानायक’ के तौर पर भी जानते हैं और प्‍यार से बिगबी, शहंशाह भी कहते हैं। सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के तौर पर उन्हें 3 बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुका है। इसके अलावा 14 बार उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड भी मिल चुका है। फिल्मों के साथ साथ वे गायक, निर्माता और टीवी प्रिजेंटर भी रहे हैं। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मान से भी नवाजा है।
पृष्ठभूमि-

अमिताभ बच्चन का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम हरिवंश राय बच्चन था। उनके पिता हिंदी जगत के मशहूर कवि रहे हैं। उनकी मां का नाम तेजी बच्चन था। उनके एक छोटे भाई भी हैं जिनका नाम अजिताभ है। अमिताभ का नाम पहले इंकलाब रखा गया था लेकिन उनके पिता के साथी रहे कवि सुमित्रानंदन पंत के कहने पर उनका नाम अमिताभ रखा गया।

पढ़ाई-

अमिताभ बच्चन शेरवुड कॉलेज, नैनीताल के छात्र रहे हैं। इसके बाद की पढ़ाई उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोरीमल कॉलेज से की थी। पढ़ाई में भी वे काफी अव्‍वल थे और कक्षा के अच्‍छे छात्रों में उनकी गिनती होती थी। कहीं ना कहीं ये गुण उनके पिताजी से ही आए थे क्‍योंकि वे भी जानेमाने कवि रहे थे।

शादी-

अमिताभ बच्चन की शादी जया बच्चन से हुई जिनसे उन्हें दो बच्चे हैं। अभिषेक बच्चन उनके सुपुत्र हैं और श्वेता नंदा उनकी सुपुत्री हैं। रेखा से उनके अफेयर की चर्चा भी खूब हुई और लोगों के गॉसिप का विषय बनी।

करियर-

अमिताभ बच्चन की शुरूआत फिल्मों में वॉयस नैरेटर के तौर पर फिल्म 'भुवन शोम' से हुई थी लेकिन अभिनेता के तौर पर उनके करियर की शुरूआत फिल्म 'सात हिंदुस्तानी' से हुई। इसके बाद उन्होंने कई फिल्में कीं लेकिन वे ज्यादा सफल नहीं हो पाईं। फिल्म 'जंजीर' उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। इसके बाद उन्होंने लगातार हिट फिल्मों की झड़ी तो लगाई ही, इसके साथ ही साथ वे हर दर्शक वर्ग में लोकप्रिय हो गए और फिल्म इंडस्ट्री में अपने अभिनय का लोहा भी मनवाया।

प्रसिद्ध फिल्में-

सात हिंदुस्तानी, आनंद, जंजीर, अभिमान, सौदागर, चुपके चुपके, दीवार, शोले, कभी कभी, अमर अकबर एंथनी, त्रिशूल, डॉन, मुकद्दर का सिकंदर, मि. नटवरलाल, लावारिस, सिलसिला, कालिया, सत्ते पे सत्ता, नमक हलाल, शक्ति, कुली, शराबी, मर्द, शहंशाह, अग्निपथ, खुदा गवाह, मोहब्बतें, बागबान, ब्लैक, वक्त, सरकार, चीनी कम, भूतनाथ, पा, सत्याग्रह, शमिताभ जैसी शानदार फिल्मों ने ही उन्हें सदी का महानायक बना दिया।

आने वाली फिल्में-


पीकू, वजीर उनकी आने वाली फिल्में हैं जिसमें वे बिल्कुल अलग किरदार में नजर आएंगे। उनके फैंस इन फिल्मों का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

अमिताभ बच्चन से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें-


- अमिताभ बच्चन 'सदी के महानायक' कहे जाते हैं। वे हिन्दी फिल्मों के सबसे बड़े सुपरस्टार माने जाते हैं।

- उन्हें असली पहचान फिल्म 'जंजीर' से मिली थी। यह फिल्म अमिताभ से पहले कई बड़े अभिनेताओं को ऑफर हुई थी जिसमें मशहूर अभिनेता राजकुमार भी शामिल थे लेकिन राजकुमार ने इस फिल्म को यह कहकर ठुकरा दिया था कि डायरेक्‍टर के बालों के तेल की खुशबू अच्‍छी नहीं है।

- 70 और 80 के दौर में फिल्‍मी सीन्‍स में अमिताभ बच्‍चन का ही आधिपत्‍य था। इस वजह से फ्रेंच डायरेक्‍टर फ़्राँस्वा त्रुफ़ो ने उन्‍हें 'वन मैन इंडस्‍ट्री' तक करार दिया था।

- अपने करियर के दौरान उन्‍होंने कई पुरस्‍कार जीते हैं जिसमें सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेता के तौर पर 3 राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार भी शामिल है। इंटरनेशनल फिल्‍म फेस्टिवल्‍स और कई अवार्ड समारोहों में उन्‍हें कई पुरस्‍कारों से सम्‍मानित किया गया है। वे 14 फिल्‍मफेयर पुरस्‍कार भी जीत चुके हैं। उन्‍हें फिल्‍मफेयर में सबसे ज्‍यादा 39 बार नामांकित किया जा चुका है।

- फिल्‍मों में बोले गए उनके डॉयलाग आज भी लोगों के दिलों में ताजा हैं। उनके सुपरहिट करियर में उनके फिल्‍मस के डॉयलाग्‍स का भी अ‍हम रोल रहा है।

- उन्‍हें भारत सरकार की तरफ से 1984 में पद्मश्री, 2001 में पद्मभूषण और 2015 में पद्मविभूषण जैसे सम्‍मान मिल चुके हैं।

- करियर के शुरूआती दौर में उन्‍हें काफी दिक्‍कतों का सामना करना पड़ा था। उनकी फिल्‍में लगातार फलाप हो रही थीं तब वे वापिस घर लौटने का मन बना चुके थे लेकिन फिल्‍म जंजीर उनके करियर का टर्निंग प्‍वाइंट बन गई और फिल्‍म इंडस्‍ट्री में 'एंग्री यंग मैन' का उदय हुआ।

- आज जिस अमिताभ बच्‍चन के आवाज की पूरी दुनिया कायल है, एक समय था जब उनकी आवाज उनके करियर में रोड़ा बन रही थी और उन्‍हें नकार दिया गया था लेकिन बाद में उनकी आवाज ही उनकी ताकत बनी और उनकी आवाज औरों से काफी जुदा और भारी थी, इस वजह से उन्‍हें कई निर्देशकों ने कई फिल्‍मों में अपनी कहानी को नैरेट तक करवाया। कई प्रोग्राम्‍स को उन्‍होंने भी होस्‍ट किया।

अमिताभ के करियर का बुरा दौर:- 

- उनकी फिल्‍में अच्‍छा बिजनेस कर रही थीं कि अचानक 26 जुलाई 1982 को कुली फिल्‍म की शूटिंग के दौरान उन्‍हें गंभीर चोट लगी गई। दरअसल, फिल्‍म के एक एक्‍शन दृश्‍य में अभिनेता पुनीत इस्‍सर को अमिताभ को मुक्‍का मारना था और उन्‍हें मेज से टकराकर जमीन पर गिरना था। लेकिन जैसे ही वे मेज की तरफ कूदे, मेज का कोना उनके आंतों में लग गया जिसकी वजह से उनका काफी खून बह गया और स्‍थिति इतनी गंभीर हो गई कि ऐसा लगने लगा कि वे मौत के करीब हैं लेकिन लोगों की दुआओं की वजह से वे ठीक हो गए।

राजनीति में प्रवेश:- 

- कुली में लगी चोट के बाद उन्‍हें लगा कि वे अब फिल्‍में नहीं कर पाएंगे और उन्‍होंने अपने पैर राजनीति में बढ़ा दिए। उन्‍होंने 8वें लोकसभा चुनाव में अपने गृह क्षेत्र इलाहाबाद की सीट से उ.प्र. के पूर्व मुख्‍यमंत्री एचएन बहुगुणा को काफी ज्‍यादा वोटों से हराया।

- राजनीति में ज्‍यादा दिन वे नहीं टिक सके और फिर उन्‍होंने फिल्‍मों को ही अपने लिए उचित समझा।

- जब उनकी कंपनी एबीसीएल आर्थिक संकट से जूझ रही थी तब उनके मित्र और राजनी‍तिज्ञ अमर सिंह ने उनकी काफी मदद की थी। बाद में अमिताभ ने भी अमर सिंह की समाजवादी पार्टी को काफी सहयोग किया। उनकी पत्‍नी जया बच्‍चन ने समाजवादी पार्टी को ज्‍वाइन कर लिया और वे राज्‍यसभा की सदस्‍य बन गईं। अमिताभ ने पार्टी के लिए कई विज्ञापन और राजनीतिक अभियान भी किए।

- फिल्‍मेां से एक बार फिर उन्‍होंने वापसी की और फिल्‍म 'शहंशाह' हिट हुई। इसके बाद उनके अग्निपथ में निभाए गए अभिनय को भी काफी सराहा गया और इसके लिए उन्‍हें राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार भी मिला लेकिन उस दौरान बाकी कई फिल्‍में कोई खास कमाल नहीं दिखा स‍कीं।

फिल्‍मों में तगड़ी वापसी:- 


- 2000 में आई मोहब्‍बतें उनके डूबते करियर को बचाने में काफी मददगार साबित हुई और फिल्‍म को और उनके अभिनय को काफी सराहा गया। इसके बाद उन्‍होंने कई फिल्‍मों में काम किया जिसे आलोचकों के साथ साथ दर्शकों ने भी काफी पसंद किया।

- 2005 में आई फिल्‍म 'ब्‍लैक' में उन्‍होंने शानदार अभिनय किया और उन्‍हें राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार से एक बार फिर सम्‍मानित किया गया।

- फिल्‍म पा में उन्‍होंने अपने बेटे अभिषेक बच्‍चन के ही बेटे का किरदार निभाया। फिल्‍म को काफी पसंद किया गया और एक बार फिर उन्‍हें राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार से नवाजा गया।

- वे काफी लंबे समय से गुजरात पर्यटन के ब्रांड एंबेसडर भी हैं।

- उन्‍होंने टीवी की दुनिया में भी बुलंदियों के झंडे गाड़े हैं और उनके द्वारा होस्‍ट किया गया केबीसी बहुत पापुलर हुआ। इसने टीआरपी के सारे रिकार्ड तोड़ दिए और इस प्रोग्राम के जरिए कई लोग करोड़पति बने।
सामाजिक कार्यों में आगे:-

- इन सबके इतर अमिताभ बच्‍चन लोगों की मदद के लिए भी हमेशा आगे खड़े रहते हैं। वे सामाजिक कार्यों में काफी आगे रहते हैं। कर्ज में डूबे आंध्रप्रदेश के 40 किसानों को अमिताभ ने 11 लाख रूपए की मदद की। ऐसे ही विदर्भ के किसानों की भी उन्‍होंने 30 लाख रूपए की मदद की। इसके अलावा और भी कई ऐसे मौके रहे हैं जिसमें अमिताभ ने दरियादिली दिखाई है और लोगों की मदद की है।

- जून 2000 में वे पहले ऐसे एशिया के व्‍यक्ति थे जिनकी लंदन के मैडम तुसाद संग्रहालय में वैक्‍स की मूर्ति स्‍थापित गई थी।

- उनके ऊपर कई किताबें भी लिखी जा चुकी हैं-
  अमिताभ बच्‍चन: द लिजेंड 1999 में, टू बी ऑर नॉट टू बी: अमिताभ बच्‍चन 2004 में, एबी: द लिजेंड (ए फोटोग्राफर्स ट्रिब्‍यूट) 2006 में, अमिताभ बच्‍चन: एक जीवित किंवदंती 2006 में, अमिताभ: द मेकिंग ऑफ ए सुपरस्‍टार 2006 में, लुकिंग फॉर द बिग बी: बॉलीवुड, बच्‍चन एंड मी 2007 में और बच्‍चनालिया 2009 में प्रकाशित हुई हैं।

- वे शुद्ध शाकाहारी हैं और 2012 में 'पेटा' इंडिया द्वारा उन्‍हें 'हॉटेस्‍ट वेजिटेरियन' करार दिया गया। पेटा एशिया द्वारा कराए गए एक कांटेस्‍ट पोल में एशिया के सेक्सियस्‍ट वेजिटेरियन का टाईटल भी उन्‍होंने जीता। 

बुधवार, २५ जानेवारी, २०१७

Homi Jahangir Bhabha


जन्म: 30 अक्टूबर 1909, मुंबई
कार्य/पद: भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम के जनक
होमी जहांगीर भाभा भारत के महान परमाणु वैज्ञानिक थे। उन्हे भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। उन्होंने देश के परमाणु कार्यक्रम के भावी स्वरूप की ऐसी मजबूत नींव रखी, जिसके चलते भारत आज विश्व के प्रमुख परमाणु संपन्न देशों की कतार में खड़ा है। मुट्ठी भर वैज्ञानिकों की सहायता से परमाणु क्षेत्र में अनुसंधान का कार्य शुरू वाले डॉ भाभा ने समय से पहले ही परमाणु ऊर्जा की क्षमता और विभिन्न क्षेत्रों में उसके उपयोग की संभावनाओं को परख लिया था। उन्होंने नाभिकीय विज्ञान के क्षेत्र में उस समय कार्य आरम्भ किया जब अविछिन्न शृंखला अभिक्रिया का ज्ञान नहीं के बराबर था और नाभिकीय उर्जा से विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मानने को तैयार नहीं था। उन्होंने कॉस्केट थ्योरी ऑफ इलेक्ट्रान का प्रतिपादन करने साथ ही कॉस्मिक किरणों पर भी काम किया जो पृथ्वी की ओर आते हुए वायुमंडल में प्रवेश करती है। उन्होंने ‘टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च’ (टीआइएफआर) और ‘भाभा एटॉमिक रिसर्च सेण्टर’ के स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वो भारत के ‘एटॉमिक एनर्जी कमीशन’ के पहले अध्यक्ष भी थे।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
होमी जहांगीर भाभा मुंबई के एक अमीर पारसी परिवार में 30 अक्टूबर, 1909 को पैदा हुए थे। उनके पिता  जहांगीर भाभा ने कैंब्रिज से शिक्षा प्राप्त की थी और एक जाने-माने वकील थे और एक वक्त पर टाटा इंटरप्राइजेज के लिए भी कार्य किया था। होमी की माता भी उच्च घराने से सम्बन्ध रखती थीं। बालक होमी के लिए पुस्तकालय की व्यवस्था घर पर ही कर दी गई थी जहाँ वे विज्ञान तथा अन्य विषयों से संबन्धित पुस्तकों का अध्ययन करते थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कैथरैडल स्कूल में हुई और फिर आगे की शिक्षा के लिए जॉन केनन में पढने गये। शुरुआत से ही उनकी अत्यधिक रूचि भौतिक विज्ञानं और गणित में थी। इसके बाद होमी ने एल्फिस्टन कॉलेज मुंबई और रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से बीएससी की परीक्षा पास की। वर्ष 1927 में वो इंग्लैंड चले गए जहाँ उन्होंने कैंब्रिज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। वहां उन्होंने सन् 1930 में स्नातक की उपाधि अर्जित की और सन् 1934 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से ही उन्होंने डाक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की।
अध्ययन के दौरान कुशाग्र बुद्धी के कारण होमी को लगातार छात्रवृत्ती मिलती रही। पीएचडी के दौरान उनको आइजेक न्यूटन फेलोशिप भी मिली। उन्हें प्रसिद्ध वैज्ञानिक रुदरफोर्ड, डेराक, तथा नील्सबेग के साथ काम करने का अवसर भी मिला।
भाभा भौतिक विज्ञान ही पढ़ना चाहते थे – इंजीनियरिंग की पढ़ाई तो उन्होंने अपने परिवार की ख्वाहिश के तहत की। फिजिक्स के प्रति उनका लगाव जुनूनी स्तर तक था इसी कारण इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान भी उन्होंने अपने प्रिय विषय फिजिक्स से खुद को जोड़े रखा।
दूसरे विश्वयुद्ध के प्रारंभ में वर्ष 1939 में होमी भारत वापस आ गये। उस समय तक होमी भाभा काफी ख्याती अर्जित कर चुके थे। इसी दौरान वह बेंगलूर के इंडियन स्कूल आफ साइंस से जुड़ गए और 1940 में रीडर पद पर नियुक्त हुए। यहाँ से उनका एक नया सफर शुरू हुआ जिसके बाद वह अंतिम समय तक देश के लिए विज्ञान की सेवा में लगे रहे। इंडियन स्कूल आफ साइंस बैंगलोर में उन्होने कॉस्मिक किरणों की खोज के लिए एक अलग विभाग की स्थापना की।
वर्ष 1941 में मात्र 31 वर्ष की आयु में डॉ भाभा को रॉयल सोसाइटी का सदस्य चुना गया था जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी। उन्हें 1944 में प्रोफेसर बना दिया गया। इंडियन स्कूल ऑफ़ साइंस के तात्कालिक अध्यक्ष और नोबल पुरस्कार विजेता प्रो. सी.वी. रमन भी होमी भाभा से बहुत प्रभावित थे।
उन्होंने जेआरडी टाटा की मदद से मुंबई में ‘टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च’ की स्थापना की और वर्ष 1945 में इसके निदेशक बन गए।
वर्ष 1948 में डॉ भाभा ने भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की और अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसके अलावा वह कई और महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख भी रहे।
भाभा के बारे में एक बड़ी मजेदार बात ये है कि विज्ञान के साथ-साथ शास्त्रिय संगीत, मूर्तीकला, चित्रकला तथा नृत्य आदि क्षेत्रों में उनकी गहन रूचि और अच्छी पकङ थी। वे चित्रकारों और मूर्तिकारों को प्रोत्साहित करने के लिए उनके चित्रों और मूर्तियों को खरीद कर टॉम्ब्रे स्थित संस्थान में सजाते थे और संगीत कार्यक्रमों में भी हिस्सा लिया करते थे। मशहूर चित्रकार एम एफ हुसैन की पहली प्रदर्शनी का मुम्बई में उद्घाटन डॉ भाभा ने ही किया था।
भारत के महान वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार विजेता सर सीवी रमन के मुंह से अपने वैज्ञानिक दोस्तों के लिए तारीफ़ के शब्द मुश्किल से निकलते थे… लेकिन इसमें एक अपवाद था… डॉ होमी जहाँगीर भाभा। रमन उन्हें भारत का लियोनार्डो डी विंची कहा करते थे।
वर्ष 1955 में जिनेवा में संयुक राज्य संघ द्वारा आयोजित ‘शांतिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग’ के पहले सम्मलेन में डॉ. होमी भाभा को सभापति बनाया गया। जहाँ पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक इस बात का प्रचार कर रहे थे कि अल्पविकसित देशों को पहले औद्योगिक विकास करना चाहिए तब परमाणु शक्ति के बारे में सोचना चाहिए वहीँ डॉ भाभा ने इसका जोरदार खण्डन किया और कहा कि अल्प विकसित राष्ट्र इसका प्रयोग शान्ति पूर्वक तथा औद्योगिक विकास के लिए कर सकते हैं।
डॉ भाभा को पाँच बार भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया परन्तु विज्ञानं की दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान इस महान वैज्ञानिक को मिल नहीं पाया।
भारत के इस महान वैज्ञानिक और स्वप्नदृष्टा का निधन 24 जनवरी 1966 में स्विट्जरलैंड में एक विमान दुर्घटना में हो गया।
देखा जाये तो उनके जीवन की कहानी आधुनिक भारत के निर्माण की कहानी भी है। भाभा को श्रद्धांजलि देते हुए जेआर डी टाटा ने कहा था, “होमी भाभा उन तीन महान हस्तियों में से एक हैं जिन्हें मुझे इस दुनिया में जानने का सौभाग्य मिला है। इनमें से एक थे जवाहरलाल नेहरू, दूसरे थे महात्मा गाँधी और तीसरे थे होमी भाभा। होमी न सिर्फ़ एक महान गणितज्ञ और वैज्ञानिक थे बल्कि एक महान इंजीनियर, निर्माता और उद्यानकर्मी भी थे। इसके अलावा वो एक कलाकार भी थे। वास्तव में जितने भी लोगों को मैंने जाना है और उनमें ये दो लोग भी शामिल हैं जिनका मैंने ज़िक्र किया है, उनमें से होमी अकेले शख़्स हैं… जिन्हें “संपूर्ण इंसान’ कहा जा सकता है।”
सम्मान
  • होमी भाभा भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों से कई मानद डिग्रियां प्राप्त हुईं
  • 1941 में मात्र 31 वर्ष की आयु में डॉ भाभा को रॉयल सोसाइटी का सदस्य चुना गया
  • उनको पाँच बार भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया
  • वर्ष में 1943 में एडम्स पुरस्कार मिला
  • वर्ष 1948 में हॉपकिन्स पुरस्कार से सम्मानित
  • वर्ष 1959 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने डॉ. ऑफ सांइस प्रदान की
  • वर्ष 1954 में भारत सरकार ने डॉ. भाभा को पद्मभूषण से अलंकृत किया