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सोमवार, ६ मार्च, २०१७
रविवार, ५ मार्च, २०१७
Louis Braille
पूरा नाम :- लुइस ब्रेल
जन्म :- 4 january 1809
जन्मस्थान :- पश्चिमी पेरिस (फ्रांस)
पिता :- साइमन
माता :- मोनिक्यु
“THE LESS WE SEE WITH OUR EYES, THE MORE WE SEE OUR HEARTS…”
ब्रेल लिपि के जनक लुइस ब्रेल – Louis Braille
लुइस ब्रेल एक फ्रेंच शिक्षक और अन्धो के लिये ब्रेल लिपि का अविष्कार करने वाले महान व्यक्ति थे. उनकी इस लिपि को पुरे विश्व में ब्रेल के नाम से जाना जाता है. जन्म से ही ब्रेल किसी अपघात की वजह से दोनों आँखों से अंधे थे, लेकिन किशोरावस्था में ही उन्होंने अपनी इस कमजोरी में मास्टरी हासिल कर ली थी. पढाई में ब्रेल को काफी रूचि थी और अंधे होने की वजह से फ्रांस के रॉयल इंस्टिट्यूट की तरफ से उन्हें स्कालरशिप भी मिलती थी. और विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने उन्होंने अन्धो के लिये कोड भाषा का विकास करना शुरू कर दिया था ताकि अंधे लोग आसानी से पढ़-लिख सके. मिलिट्री क्रिप्टोग्राफ़ी चार्ल्स बरबीर से उन्हें काफी प्रेरणा मिली. ब्रेल ने अन्धो की जरुरतो को समझते हुए उनके लिये कुछ करने की ठानी. 1824 में पहली बार उन्होंने उनके द्वारा कीये गये कार्य का प्रदर्शन किया था.
युवावस्था में ब्रेल ने उसी इंस्टिट्यूट में प्रोफेसर के पद पर रहते हुए सेवा की और म्यूजिशियन के पद पर भी रहते हुए उन्होंने काफी लुफ्त उठाया लेकिन अपनी ज़िन्दगी का ज्यादातर समय उन्होंने अपनी ब्रेल लिपि को विकसित करने में लगाया. उनकी मृत्यु के काफी समय बाद तक उनकी लिपि को ज्यादा लोगो ने उपयोग नही किया था लेकिन बाद में उनकी इस लिपि का इतना विकास हुआ की उनकी इस खोज को क्रांतिकारी अविष्कार माना गया. और बाद में पुरे विश्वमे अन्धो की जरुरतो को समझते हुए उनकी इस ब्रेल लिपि को अपनाया गया था.
लुइस ब्रेल का प्रारंभिक जीवन – Louis Braille Life History :
लुइस ब्रेल / Louis Braille का जन्म फ्रांस के कूपवराय में हुआ था जो पश्चिमी पेरिस से 20 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है, उनकी माता मोनिक्यु और पिता साइमन-रेने के साथ कुछ हेक्टर्स जमीन पर रहते थे. उनके पिता साइमन एक सफल और प्रसिद्ध उद्योगपति थे.
जैसे-जैसे ब्रेल बड़े होते गये वैसे-वैसे वे अपना ज्यादातर समय अपने पिता के साथ बिताने लगे थे. और तीन साल की उम्र में ब्रेल कुछ औजारो के साथ भी खेलने लगे थे, जिसमे कभी-कभी वे चमड़े के टुकड़े में सुई की सहायता से छेद करने की भी कोशिश करते थे.
एक दिन काठी के लिये लकडी को काटते समय इस्तेमाल किया जाने वाला चाकू अचानक उछल कर नन्हें लुइस की आंख में जा लगा और बालक की आँख से खून की धारा बह निकली. रोता हुआ बालक अपनी आंख को हाथ से दबाकर सीधे घर आया और घर में साधारण जडी लगाकर उसकी आँख पर पट्टी कर दी गयी. शायद यह माना गया होगा कि लुइस अभी छोटा है इसके चलते शीघ्र ही चोट अपनेआप ठीक हो जायेगी. बालक लुइस की आंख के ठीेक होने की प्रतीक्षा की जाने लगी. कुछ दिन बाद बालक लुइस को अपनी दूसरी आंख से भी कम दिखलायी देने की शिकायत की परन्तु यह उसके पिता साइमन की लापरवाही जिसके चलते बालक की आँख का समुचित इलाज नहीं कराया जा सका और धीरे धीरे वह नन्हा बालक पाँच वर्ष का पूरा होने तक पूरी तरह दृष्टि हीन हो गया. रंग बिरंगे संसार के स्थानपर उस बालक के लिये सब कुछ गहन अंधकार में डूब गया. अपने पिता के चमडे के उद्योग में उत्सुकता रखने वाले लुई ने अपनी आखें एक दुर्घटना में गवां दी. यह दुर्घटना लुइस के पिता की कार्यशाला में घटी. जहाँ तीन वर्ष की उम्र में एक लोहे का सूजा लुई की आँख में घुस गयी.
इसके बाद किशोरावस्था से युवावस्था तक लुइस को आगे बढ़ने में काफी मुश्किलो का सामना करना पड़ रहा था, इसके चलते उनके माता-पिता उनका काफी ध्यान भी रखते थे. किसी लकड़ी की सहायता से वे अपने गाव के रास्तो को ढुंढने की कोशिश करते थे और इसी तरह वे बड़े होते गये. लेकिज ब्रेल का दिमाग काफी गतिशील था उन्होंने अपने विचारो से स्थानिक शिक्षको और नागरिको को आकर्षित कर रखा था और वे उच्चतम शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे.
लुइस ब्रेल की शिक्षा – Louis Braille Education :
ब्रेल ने 10 साल की उम्र तक कूपवराय में ही शिक्षा प्राप्त की क्योकि दिमागी रूप से तो वे काफी सशक्त थे लेकिन शारीरक रूप से वे दृष्टी हीन थे. ब्रेल ने दृष्टिहीन लोगो के लिये बनी दुनिया की पहली स्कूल रॉयल इंस्टिट्यूट फॉर ब्लाइंड युथ से शिक्षा ग्रहण की जिसे बाद में नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर ब्लाइंड युथ, पेरिस नाम दिया गया था. उनके परीवार को छोड़ने वाले ब्रेल पहले इंसान थे, अपने परीवार को छोड़ते हुए वे फेब्रुअरी 1819 में स्कूल में चले गए. उस समय रॉयल इंस्टिट्यूट की स्थापना नही हुई थी, लेकिन फिर भी स्कूल में दृष्टिहीन लोगो को पर्याप्त सुविधाये दी जाती थी. ताकि वे अच्छी शिक्षा ग्रहण कर सके.
“बातचीत करना मतलब एक-दूजे के ज्ञान हो समझना ही है और दृष्टिहीन लोगो के लिये ये बहोत महत्वपूर्ण है और इस बात को हम नजर अंदाज़ नही कर सकते. उनके अनुसार विश्व में अन्धो को भी उतना ही महत्त्व दिया जाना चाहिए जितना साधारण लोगो को दिया जाता है.”
लेकिन जीते जी उनके इस अविष्कार का महत्त्व लोगो को पता नही चला लेकिन उनकी मृत्यु के बाद केवल पेरिस ही नही बल्कि पुरे विश्व के लिये उनका अविष्कार सहायक साबित हुआ.
लेकिन जीते जी उनके इस अविष्कार का महत्त्व लोगो को पता नही चला लेकिन उनकी मृत्यु के बाद केवल पेरिस ही नही बल्कि पुरे विश्व के लिये उनका अविष्कार सहायक साबित हुआ.
भारत सरकार ने सन 2009 में लुइस ब्रेल के सम्मान में डाक टिकिट जारी किया है. लूइस द्वारा किये गये कार्य अकेले किसी राष्ट्र के लिये न होकर सम्पूर्ण विश्व की दृष्ठिहीन मानव जाति के लिये उपयोगी थे अतः सिर्फ एक राष्ट् के द्वारा सम्मान प्रदान किये जाने भर से उस महात्मा को सच्ची श्रद्वांजलि नहीं हो सकती थी. विगत वर्ष 2009 में 4 जनवरी को जब लुइस ब्रेल के जन्म को पूरे दो सौ वर्षों का समय पूरा हुआ तो लुइस ब्रेल जन्म द्विशती के अवसर पर हमारे देश ने उन्हें पुनः पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जब इस अवसर पर उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया.
यह शायद पहला अवसर नहीं है जब मानव जाति ने किसी महान आविष्कारक के कार्य को उसके जीवन काल में उपेक्षित किया और जब वह महान आविष्कारक नहीं रहे तो उनके कार्य का सही मूल्यांकन तथा उन्हें अपेक्षित सम्मान प्रदान करते हुये अपनी भूल का सुधार किया. ऐसी परिस्थितियां सम्पूर्ण विश्व के समक्ष अक्सर आती रहती हैं जब किसी महानआत्मा के कार्य को समय रहते ईमानदारी से मूल्यांकित नहीं किया जाता तथा उसकी मृत्यु के उपरान्त उसके द्वारा किये गये कार्य का वास्तविक मूल्यांकन हो पाता है. ऐसी भूलों के लिये कदाचित परिस्थितियों को निरपेक्ष रूप से न देख पाने की हमारी अयोग्यता ही हो सकती है.
शनिवार, ४ मार्च, २०१७
शुक्रवार, ३ मार्च, २०१७
Kunwar Sachdeva एक सफल उद्योजक
कुँवर सचदेव – Kunwer Sachdeva भारत की लीडिंग पॉवर सोल्यूशन कंपनी सु-काम (Su-Kam) Sukam solar inverter के संस्थापक और एम् डी है और साथ ही वे एक महान खोजकर्ता, मार्केटर, प्रेरणादायक वक्ता और उद्योजक भी है। सचदेव के सु-काम के सफलता की कहानी “मेक इन इंडिया” का सबसे अच्छा और सबसे बड़ा उदाहरण है।
सचदेव का जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था, लेकिन सचदेव ने कभी भी अपनी आर्थिक परिस्थितियों को अपनी सफलता के बीच में नही आने दिया। और सिर्फ 15 वर्ष की आयु में ही वे एक महान सफल उद्योजक बन गए। अपने व्यवसाय की शुरुवात उन्होंने अपने बड़े भाई के साथ मिलकर साइकिल पर पेन बेचते हुए की थी और बाद में उन्होंने एक सफल केबल टीवी कम्युनिकेशन व्यवसाय की स्थापना दिल्ली में की थी। एक खोजकर्ता के रूप में उन्होंने जल्द ही भारत के पॉवर बैकअप इंडस्ट्री के विकास और उनकी जरूरतों को भाँप लिया था और 1998 में ही उन्होंने सु-काम पॉवर सिस्टम की स्थापना करने के लिए केबल टीवी के व्यवसाय को बंद करने की ठान ली।
कुछ ही सालो में कड़ी मशक्कत और महेनत करते हुए उन्होंने आज सु-काम को भारत की मुख्य कंपनियों में से एक बनाया। आज सु-काम इंडियन मल्टीनेशनल कारपोरेशन है और इसे भारत की सबसे विकसित और तेज़ी से बढ़ने वाली इंडस्ट्री में से एक माना जाता है। यह कंपनी तेज़ी से विकसित होने वाली टॉप 500 कंपनियों की सूचि में भी शामिल है। सचदेव ने भी तक़रीबन 90 देशो तक अपनी कंपनी को पहुचाया है और इसका लक्ष्य अफ्रीका और एशिया के ज्यादातर भागो को कवर करना ही है।
खोजकर्ता – यूपीएस / इनवेटर इंडस्ट्री में खोज
दिल्ली यूनिवर्सिटी से मैथमेटिकल स्टेटिस्टिक्स और लॉ की डिग्री हासिल करने के साथ ही और साथ ही बिना किसी टेक्निकल बैकग्राउंड के होने के बावजूद उन्होंने पॉवर इलेक्ट्रॉनिक्स में महारत हासिल कर रखी थी। विविध व्यवसायों को सँभालते हुए भी वे सु-काम (Su-Kam) के आर & डी डिवीज़न के हेड बने।
इंडियन पॉवर बैकअप इंडस्ट्री में टेक्नोलॉजी और डिजाईन के लिए पेटेंट फाइल करने वाले सचदेव पहले भारतीय उद्योगपति थे। विश्व के पहले प्लास्टिक बॉडी इन्वर्टर के अविष्कार का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है और उनके इस अविष्कार को इंडिया टुडे ने “इनोवेशन ऑफ़ द डिकेड” का भी नाम दिया। कुंवर ने वर्ल्ड क्लास टेक्नोलॉजीज जैसे मोस्फेट (MOSFET), माइक्रो कंट्रोलर बेस्ड और DSP साइन वेव का अविष्कार कर पॉवर बैकअप इंडस्ट्री में क्रांति ला दी थी। उन्होंने भारत को “होम यूपीएस” भी दिया जिसमे यूपीएस और इन्वर्टर दोनों के गुण थे। सु-काम (Su-Kam) के आने से पहले इन्वर्टर उद्योग पर 100 से भी ज्यादा लोगो का शासन था जो घटिया माल बेच रहे थे – लेकिन कुंवर ने पुरे इन्वर्टर उद्योग को अपने अविष्कार से चुनौती दी रखी थी।
कुंवर अपनी उपलब्धियों से कभी संतुष्ट नही थे और उनमे हमेशा कुछ नयी टेक्नोलॉजी का अविष्कार करने की भूक लगी रहती। कुंवर को कई बार लगता था की, “यदि वर्तमान में सभी इलेक्ट्रॉनिक टच स्क्रीन और वाय-फाई से जुड़े है तो होम यूपीएस क्यु नही?” इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने यूपीएस की टेक्नोलॉजी में बदलाव किये। और आज कुंवर अपना पहला टच स्क्रीन यूपीएस लांच करने के लिए तैयार है जिसमे वाय-फाई की सुविधा भी दी गयी है। एक दिन ऐसा भी होगा शायद ही किसी ने सोचा होगा।
पॉवर बैकअप इंडस्ट्री के विकास में उनके बहुत से महत्वपूर्ण योगदानो को देखते हुए उन्हें “इन्वर्टर मैन ऑफ़ इंडिया” के नाम से भी जाना जाता है।
दी सोलर मैन ऑफ़ इंडिया (The Solar Man of India) –
टेक्नोवेशन के प्रति कुंवर का प्यार हमेशा बढ़ता ही गया था। ग्रीन एनर्जी का निर्माण करने में उन्हें काफी रूचि थी उनकी इच्छा थी की भारत में हर जगह पर ग्रीन एनर्जी का निर्माण होना चाहिए। एक दशक पहले सौर उर्जा के उपकरण आने वाले दशको में क्रांति लायेंगे। उनके घर से सम्बंधित सौर उपकरणों में सोलरकॉन (एक्सिस्टिंग इन्वर्टर को सोलर इन्वर्टर में बदलता है) और ब्रेनी (दुनियाँ का पहला हाइब्रिड सोलर होम यूपीएस) शामिल है।
उन्होंने बहुत से छोटे हाउस रिमोट से लेकर बड़ी इंडस्ट्री के लिए भी सोलर उपकरणों की खोज की है। यूनिक सोलर DC सिस्टम के निर्माण में भी उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। कुंवर के कठिन परिश्रम के बाद ही सु-काम (Su-kam) सर्वाधिक मार्किट शेयर पाने में सफल रही। फ़िलहाल सु-काम का लक्ष्य भारत के हर एक घर को सोलर एनर्जी से जोड़ना है।
उनका मंत्र यही है, “I innovate therefore I am”
बेहतरीन विक्रेता –
सु-काम की स्थापना के पहले वर्षो में ही कुंवर ने मार्केटिंग और एडवरटाइजिंग के महत्त्व को जान लिया था और इसी वजह से सु-काम अखबार में विज्ञापन देने वाली पहली इन्वर्टर कंपनी बनी। कुंवर के पॉवर सोल्यूशन सेक्टर में आने से पहले किसी भी कंपनी का विशिष्ट प्रोडक्ट मैन्युअल या कैटेलॉग नही था लेकिन कुंवर ने इसे बदलकर सु-काम के सभी प्रोडक्ट का एक बेहतरीन और आकर्षित मैन्युअल प्रोडक्ट बनाया था।
कुंवर ने अपमी कंपनी सु-काम के लिए बेहतरीन मार्केटिंग स्ट्रेटेजी बना रखी थी और इससे पहले किसी कंपनी ने मार्केटिंग स्ट्रेटेजी नही बनायी थी लेकिन इसके बाद 90 के दशक में सभी ने उनके रास्तो पर चलते हुए मार्केटिंग स्ट्रेटेजी बनाना शुरू किया। और इसके बाद सु-काम प्रसिद्ध ढाबो के बोर्ड स्वयं बनाकर उन्हें गिफ्ट करती थी और उनपर अपने उपकरणों का विज्ञापन भी देती थी। इसके पीछे एक कहानी भी है जिसके अनुसार एक बार कुंवर कश्मीर में दाल सरोवर देखने गए थे और वहा उन्होंने बहुत सी खुबसूरत “सीकर नाव” भी देखि और अगले ही दिन वे सभी नाव सु-काम में परिवर्तित हो गयी।
कुंवर उन महान उद्योजको में से एक है जिन्होंने इंटरनल ब्रांडिंग के महत्त्व को समझा। कुंवर ने सु-काम कल्चर को इस तरह से सजाया था की उनका पूरा स्टाफ सभी त्यौहार (इसमें सु-काम का खेल सप्ताह भी शामिल है) ख़ुशी से मनाते थे, उनका स्टाफ किसी बड़े परिवार से कम नही था।
एतव और अभिनेता रवि किशन के साथ मिलकर कुंवर ने अपना पहला रियलिटी टीवी शो इंडिया ग्रेटेस्ट सेल्समेन – सेल का बाज़ीगर भी लांच किया। इससे पहले विक्रेता लोगो को प्रेरित करने के लिए किसी ने भी इस तरह के शो को नही देखा था। इस शो को बहुत लोगो ने पसंद किया और हजारो और लाखो लोगो ने इसमें भाग लिया। और इसके विजेता आज सु-काम में काम करते है।
भारतीय ब्रांड को वैश्विक बनाना –
कुंवर सचदेव का हमेशा से ही यह मानना था की यदि आप सपने देख सकते हो तो तो आप उन्हें पूरा भी कर सकते हो। और उनकी इसी सोच ने सु-काम को भारत की सबसे बड़ी पॉवर बैकअप सोल्यूशन कंपनी बनाया। वे अपने इस भारतीय ब्रांड को वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध करने चाहते थे और ऐसा करने में वे सफल भी हुए। अपने ब्रांड को वैश्विक स्तर पर फ़ैलाने के लिए उन्होंने कई विदेश यात्राये भी की थी।
कुंवर के मार्गदर्शन में ही सु-काम तक़रीबन 90 देशो में स्थापित हो सकी। सु-काम अब इंटरनेशनल ब्रांड बन चूका था और इसके साथ ही अफ्रीका और नेपाल जैसे देशो में सु-काम को कई अवार्ड भी मिले। अफ्रीका में लोग चीनी और अमेरिकन कंपनियों की तुलना में इस “मेड इन इंडिया” ब्रांड पर ज्यादा भरोसा करते है।
कुंवर के मार्गदर्शन में ही सु-काम तक़रीबन 90 देशो में स्थापित हो सकी। सु-काम अब इंटरनेशनल ब्रांड बन चूका था और इसके साथ ही अफ्रीका और नेपाल जैसे देशो में सु-काम को कई अवार्ड भी मिले। अफ्रीका में लोग चीनी और अमेरिकन कंपनियों की तुलना में इस “मेड इन इंडिया” ब्रांड पर ज्यादा भरोसा करते है।
अवार्ड और नामनिर्देशन –
उद्योगपति, टेक्नोलॉजी और इनोवेशन के चलते उन्हें बहुत से पुरस्कार मिले है। जिसमे मुख्य रूप से भारत सरकार द्वारा दिया गया “भारत शिरोमणि” और एर्न्स्ट एंड यंग का “साल के सर्वश्रेष्ट उद्योगपति” अवार्ड शामिल है।
आज कुंवर सचदेव की जीवनी को देखते हुए हम निश्चित तौर पे यह कह सकते है की किसी भी व्यक्ति को सफल होने के लिए डिग्री की जरुरत नही होती, बस आपका टैलेंट ही आपको सफल आदमी बनाता है। क्या आप जानते है कि बिल गेट्स्और फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकेरबेर्ग कॉलेज से निकाले गए (Dropout) हैं, फिर भी वे सफल हैं। क्योंकि दोस्तों,
“रात नही ख्वाब बदलता है,
मंजिल नही कारवां बदलता है,
जज्बा रखे हरदम जीतने का क्योंकि
किस्मत चाहे बदले या न बदले
लेकिन वक्त जरुर बदलता है।”
मंजिल नही कारवां बदलता है,
जज्बा रखे हरदम जीतने का क्योंकि
किस्मत चाहे बदले या न बदले
लेकिन वक्त जरुर बदलता है।”
गुरुवार, २ मार्च, २०१७
मंगळवार, २८ फेब्रुवारी, २०१७
शनिवार, २५ फेब्रुवारी, २०१७
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