मंगळवार, २४ जानेवारी, २०१७

सुनिल मित्तल


जन्म: 23 अक्टूबर 1957
व्यवसाय/पद/: भारती समूह के संस्थापक और अध्यक्ष
सुनील भारती मित्तल एक भारतीय उद्योगपति, समाज सेवी और भारत के सबसे बड़े टेलीकॉम कंपनी एयरटेल के चेयरमैन हैं। उनका नाम दुनिया के गिने-चुने टेलीकॉम उद्यमियों में शुमार किया जाता है। सुनील की कंपनी भारती एयरटेल दुनिया  के सबसे बड़े टेलीफोन कंपनियों में से एक है, जिसका व्यापर लगभग 19 देशों में फैला है। एयरटेल जीएसएम मोबाइल सेवा साथ -साथ इंटरनेट ब्रॉडबैंड  सेवाएं भी प्रदान करती है और करीब 20 करोड़ ग्राहक उसकी सेवाएं लेते हैं। सुनील ने ये सफलता अपनी कड़ी मेहनत, सच्ची लगन और दूरदृष्टि की बदौलत हासिल किया है।
प्रारंभिक जीवन
सुनील का जन्म पंजाब के लुधिआना जिले में 1957 को हुआ था। उनके पिता सतपाल मित्तल एक राजनेता थे और दो बार लोक सभा से और एक बार राज्य सभा से सांसद रह चुके थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मसूरी के विनबर्ग एलन स्कूल और बाद में ग्वालियर के सिंधिया स्कूल से हुई। वर्ष 1976 में उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। सुनील कहते हैं की बचपन में उन्हें पढाई-लिखे से कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी और वो अपना खुद का व्यवसाय स्थापित करना चाहते थे।
कैरियर
महज 18 साल की उम्र में उन्होंने अपना कारोबार शुरू कर दिया। उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिल कर एक छोटा-सा साइकिल व्यवसाय  मात्र 20 हजार रुपए से शुरू किया और सबसे पहले ब्रजमोहन मुंजाल की हीरो साइकिल कंपनी के लिए साइकिल के पार्ट्स बनाने शुरू किए। इसके बाद उनको ये लगा की ये व्यवसाय ज्यादा बड़ा नहीं हो सकता और अपने भाईयों के साथ मिलकर ‘भारती ओवरसीज ट्रेडिंग कंपनी” की स्थापना की। उन्होंने अपने साइकिल और दूसरे धंधों को बेच दिया और मुंबई चले गए। वर्ष 1981 में उन्होंने पंजाब के निर्यातकों से ‘इम्पोर्ट लाइसेंस” खरीदा और फिर जापान से आयातित पोर्टेबल जेनरेटरों के बिक्री का कार्य करने लगे। इस व्यवसाय से उन्हें वस्तुओं के मार्केटिंग और सेल्स का बहुत अनुभव मिला| धीरे-धीरे यह व्यवसाय भी जम गया और सब कुछ ठीक-ठाक चलने लगा परन्तु सरकार के एक नीति परिवर्तन ने उनके इस व्यापार को रातों-रात ठप्प कर दिया। यह लाइसेंस-राज का दौर था और सरकार ने जेनरेटर के आयात पर रोक लगा दी, क्योंकि दो भारतीय कंपनियों को देश में ही जेनरेटर बनाने का लाइसेंस दे दिया गया था।
इस घटना से सुनील ने यह सबक लिया कि आगे जब भी इस तरह का अवसर आएगा, वो उसे लपकने के लिए तैयार रहेंगे और वर्ष 1992 में ये मौका आया जब सरकार पहली बार मोबाइल फोन सेवा के लिए लाइसेंस बांट रही थी। सुनील ने उस अवसर को लपक लिया और उसके आगे सब इतिहास है।
1992 से पहले सुनील ने वर्ष 1986 में भारती टेलीकॉम लिमिटेड (बी टी एल) की स्थापना की थी और जर्मनी की AG सीमेंस कंपनी के साथ पुश बटन फ़ोन के निर्माण के लिए करार किया था। धीरे-धीरे उन्होंने अपने कारोबार का विस्तार किया और 1990 के दशक तक, सुनील की कंपनी फैक्स मशीन, ताररहित फोन और अन्य दूरसंचार उपकरण बना रही थी।
वर्ष 1992 में भारत सरकार ने पहली बार मोबाइल फोन सेवाओं के लिए लाइसेंस देना शुरू किया; सुनील मित्तल ने फ्रेंच दूरसंचार समूह विवेंडी के सहयोग से दिल्ली क्षेत्र के साथ-साथ कुछ अन्य क्षेत्रों का भी सेलुलर लाइसेंस प्राप्त किया। 1995 में सुनील मित्तल ने सेल्युलर सेवाओं की पेशकश के लिए भारती सेल्युलर लिमिटेड (बीसीएल) की स्थापना की और एयरटेल ब्रांड के तहत कार्य शुरू किया। जल्द ही, एयरटेल 2 लाख मोबाइल ग्राहकों का आंकड़ा पार करने वाली पहली दूरसंचार कंपनी बन गई। इसके बाद भारती सेल्यूलर लिमिटेड ने “इंडियावन” नाम से भारत की पहली निजी राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय लंबी दूरी/STD/ISD टेलीफोन सेवा प्रारम्भ की।
वर्ष 2008-2009 में भारती टेलीकॉम ने दक्षिणी अफ्रीका स्थित एक टेलीकॉम समूह “MTN” के अधिग्रहण की कोशिश की पर कई दौर के बातचीत के बावजूद दोनों कंपनियों के मध्य कोई समझौता नहीं हो सका। कुछ सूत्रों का ऐसा मानना है की दक्षिणी अफ़्रीकी सरकार शायद यह नहीं चाहती थी इसी वजह से ये समझौता नहीं हो पाया।
जून 2010 में, मित्तल के नेतृत्व में भारती टेलीकॉम ने दक्षिण अफ्रीकी टेलीकॉम कंपनी “जैन टेलीकॉम ” का अधिग्रहण किया। एक अभी तक का किसी भी भारतीय दूरसंचार कंपनी द्वारा सबसे बड़ा कभी अधिग्रहण था।
वर्ष 2012 में भारती ने अमेरिकी कंपनी वॉल-मार्ट के साथ भारत भर में खुदरा स्टोर खोलने का करार किया पर यह ज्यादा लम्बा नहीं चल सका और अक्टूबर 2013 में यह डील समाप्त हो गयी।
भारती ने वर्ष 2014 में “लूप मोबाइल” को भी लगभग ७०० करोड़ में खरीदने की घोषणा की पर बाद में सौदा रद्द कर दिया। मई 2015 में भारती रिटेल श्रंखला ‘ईज़ीडे’ और फ्यूचर बाजार के ‘बिग बाजार’ के विलय की घोषणा हुई।
पुरस्कार और सम्मान
  • 2007: भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया
  • एनडीटीवी बिजनेस लीडर पुरस्कार के तहत उन्हें “ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया लीडर” पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • उन्हें जीएसएमए अध्यक्ष के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
  • 2006 में फॉर्च्यून पत्रिका ने “एशिया बिजनेसमैन ऑफ़ द ईयर” से सम्मानित किया
  • वॉयस एवं डाटा ने 2006 में “टेलीकॉम मैन ऑफ़ द ईयर” चुना
  • फ्रॉस्ट और सुलिवन एशिया प्रशांत आईसीटी पुरस्कार, 2006, में ‘सीईओ ऑफ़ द ईयर”।
  • टेलीकॉम एशिया पुरस्कार, 2005, में सर्वश्रेष्ठ एशियाई टेलीकॉम सीईओ।
  • भारत संस्थागत निवेशक, 2005, में “सर्वश्रेष्ठ सीईओ”।
  • इकनोमिक टाइम्स, 2005 के “बिज़नेस लीडर ऑफ़ द ईयर”
  • एशियाई पुरस्कार, 2010 में “फिलैंथ्रॉपिस्ट ऑफ़ द ईयर”।

सोमवार, २३ जानेवारी, २०१७

आदि गोदरेज


जन्म: 3 अप्रैल 1942, मुंबई
कार्य क्षेत्र: उद्योगपति, गोदरेज उद्योग घराने के प्रमुख
आदि गोदरेज एक प्रसिद्ध भारतीय उद्योगपति और प्रसिद्द औद्योगिक घराने गोदरेज समूह के अध्यक्ष हैं। वे भारत के सबसे धनी उद्योगपतियों में से एक हैं। आदि कई सारे भारतीय उद्योग संगठनों के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। सन 2011 से वे इंडियन स्कूल ऑफ़ बिज़नस के बोर्ड के अध्यक्ष हैं और कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्री के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वे एम.आई.टी. स्लोअन प्रबंधन संस्थान के संकायाध्यक्ष के सलाहकार समिति के सदस्य हैं। वे नारसी मोंजी इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट स्टडीज के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स के भी अध्यक्ष हैं और व्हार्टन एशियन एग्जीक्यूटिव बोर्ड के मेम्बर हैं। इसके साथ-साथ आदि ‘हिमालयन क्लब’ के संरक्षक भी हैं। उन्होंने गोदरेज को एक परंपरागत ढंग से काम करने वाली कंपनी से एक ‘पेशेवर कंपनी’ बनाया।
प्रारंभिक जीवन
आदि गोदरेज का जन्म 3 अप्रैल 1942 को मुंबई शहर में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में ही हुई। उन्होंने एच. एल. कॉलेज से स्नातक किया और ‘एम.आई.टी. स्लोअन स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट’ से एम.बी.ए. किया। अपने प्रबंधन के पढ़ाई के दौरान वे ‘पाई लैम्ब्डा फाई’ और ‘ताऊ बीटा पाई’ के सदस्य थे। सन 1963 में उन्होंने अपनी प्रबंधन की पढ़ाई पूरी की।
करियर
अमेरिका के प्रतिष्ठित संस्थान एम.आई.टी. से एम.बी.ए. करने के बाद वे भारत लौट आये और अपने पारिवारिक व्यवसाय में शामिल हो गए। जब वे गोदरेज समूह में शामिल हुए तो प्रबंधन को उनसे बहुत उम्मीदें थी क्योंकि प्रबंधन की शिक्षा ग्रहण करने के बाद कंपनी में शामिल होने वाले वे पहले व्यक्ति थे।
आदि के शामिल होने से पहले कंपनी पुराने ढर्रे पर कार्य करती थी जिसको बदलना उनके लिए एक कठिन चुनौती थी। उन्होंने कंपनी के प्रबंधन ढाँचे को आधुनिक और सुव्यवस्थित किया और बेहतर प्रक्रियाओं को लागू किया। उन्होंने गोदरेज को एक ‘पारिवारिक कंपनी’ से एक ‘पेशेवर कंपनी’ बनाया और मुख्य कार्यकारी अधिकारी जैसे पदों पर परिवार के बाहर से पेशेवर लोगों को भर्ती किया। भारत में लाइसेंस राज के दौर में भी वे ‘गोदरेज समूह’ को सफलता के नए शिखर पर ले गए। उन्होंने अपने भाई नादिर गोदरेज (जो गोदरेज इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक और गोदरेज अग्रोवेट के अध्यक्ष हैं) और चचेरे भाई जमशेद गोदरेज (जो गोदरेज एंड बोयस के प्रबंध निदेशक और अध्यक्ष हैं) गोदरेज समूह का बहुत विकास किया है।
आदि गोदरेज के नेतृत्व में गोदरेज समूह कई परोपकारी गतिविधियों में भागिदार है। वे ‘वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड इन इंडिया’ के जोरदार समर्थक हैं और इसके कार्यों में सहयोग प्रदान किया है। सन 2011 से वे ‘इंडियन स्कूल ऑफ़ बिज़नेस’ के अध्यक्ष हैं। सन 2012-13 में उन्हें ‘कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया इंडस्ट्री (सी.आई.आई.) का अध्यक्ष भी चुना गया था।
सम्मान और पुरस्कार
आदि गोदरेज को अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।
  • राजीव गाँधी पुरस्कार 2002
  • द अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन लीडरशिप इन फिलान्थ्रोप्य अवार्ड, 2010
  • एशिया पसिफ़िक इंटरप्रेन्योरशिप सम्मान 2010 में ‘इंटरप्रेन्योर ऑफ़ द इयर’ पुरस्कार से सम्मानित
  • जी.क्यू मेन ऑफ़ द इयर अवार्ड्स 2010 में ‘बेस्ट बिजनेसमैन ऑफ़ द इयर’ पुरस्कार से सम्मानित
  • चेमेक्सिल के ‘लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार’ 2010 से सम्मानित
  • एआईएमए- जेआरडी टाटा कॉर्पोरेट लीडरशिप सम्मान 2010
  • बॉम्बे मैनेजमेंट एसोसिएशन – मैनेजमेंट ऑफ़ द इयर पुरस्कार 2010-2011
  • किम्प्रो प्लैटिनम स्टैण्डर्ड अवार्ड फॉर बिज़नस 2011
  • अर्न्स्ट एंड यंग इंटरप्रेन्योर ऑफ़ द इयर 2012
  • भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित, 2012
  • डा एशियन अवार्ड्स- इंटरप्रेन्योर ऑफ़ द इयर 2013
  • आल इंडियन मैनेजमेंट एसोसिएशन – बिज़नस लीडर ऑफ़ द इयर 2015
निजी जीवन
उन्होंने मशहूर सोशलाइट और लोकोपकारी परमेश्वर गोदरेज से विवाह किया। गोदरेज दंपत्ति के तीन बच्चे हैं। आदि गोदरेज मुंबई के जुहू क्षेत्र में रहते हैं। उनकी सबसे बड़ी बेटी तान्या गोदरेज इंडस्ट्रीज में कार्यकारी निदेशक और विपणन विभाग की अध्यक्ष हैं। उनकी दूसरी बेटी निशा गोदरेज ने अमेरिका के हार्वर्ड बिज़नस स्कूल से प्रबंधन की शिक्षा ली है और गोदरेज समूह में कार्यरत हैं। उनके बेटे पिरोजशा गोदरेज ने भी अमेरिका से प्रबंधन की शिक्षा ली है और ‘गोदरेज प्रॉपर्टीज’ से जुड़े हैं।

Belle Boyd Biography

NATIONALITY
BORN ON
09 May 1844 AD
BIRTHDAY
9th May    Famous 9th May Birthdays
CENTURY
DIED AT AGE
56
SUN SIGN
Taurus    Taurus Women
BORN IN
Martinsburg, Virginia
DIED ON
11 June 1900 AD
PLACE OF DEATH
Wisconsin Dells, Wisconsin
PERSONALITY TYPE
Ambitious
SPOUSES/PARTNERS:
Samuel Hardinge, John Swainston Hammond, Nathaniel Rue High

Isabella Maria Boyd renowned as Belle Boyd was one of the most notorious Confederate spies during the ‘American Civil War’. Also known as “Cleopatra of the Secession” and “Siren of the Shenandoah” she started espionage in her teens. She conducted her espionage from her father Benjamin Reed’s hotel in Front Royal, Virginia. Her responsibilities involved passing vital information and supplies to the Southern troops. Since she was still in her teens, it gave her an advantage of not being suspected by the Union troops. However when the press made her efforts public, she often got incarcerated, albeit for a few months every time. Her most significant achievement during her espionage was when she passed on crucial information to the Confederate General Stonewall Jackson in 1862 that aided his troops in reclaiming the town of Front Royal. Moving to England she authored her memoir, ‘Belle Boyd, in Camp and Prison’. In England she delved into acting as well. During the later stage of her life she toured across United States giving sensational lectures about her espionage during the ‘American Civil War’.
Childhood & Early Life
  • She was born on May 9, 1844, to Benjamin Reed and Mary Rebecca (Glenn) Boyd in Martinsburg, Virginia (at present West Virginia) as their eldest child. Her father owned a shop.
  • She was vivacious, courageous, witty, and spontaneous and had strong willpower since her childhood. She led an extremely pleasant and care-free childhood that was marked by her domination over her siblings. Her tomboyish and daredevil attitude was exhibited in her riding a horse in the middle of a party held by her family where she was not allowed as a child.
  • After her preliminary education she joined the ‘Mount Washington Female College’ in Baltimore in 1856 and studied there till 1860.
  • Career
    • Though most of Martinsburg supported Union, her family had strong conviction for the cause of the Confederate. While her father volunteered in the Virginia infantry, she came forward to raise funds to aid the Confederate at the very outset of the ‘American Civil War’.
    • Following an encounter at the Falling Water town, the Union troops came to Martinsburg on July 3, 1861. When the Union occupied Martinsburg, Belle Boyd freely mixed with the soldiers and after extracting whatever information she could manage, forwarded them to the Confederate officers through messengers.
    • When a group of Union soldiers came to know that there are Confederate flags in her room, they came to her family residence on July 4, 1861, to check and raise their own flag. However, she along with her mother prohibited the group to enter the house. This was followed by an altercation and when one of the soldiers hurled abusive languages at her mother and tried to enter forcefully, Belle Boyd straightaway took a pistol, shot the soldier and killed him.
    • She had to undergo a trial and following investigation the Union commanding officer concluded that her action in such situation was appropriate and she was released on defensive ground. Albeit her release, her house was kept under high vigil with sentries keeping watch around the house as also on her movements.
    • Instead of getting worried she took advantage of the situation and with her flirtatious best she was successful in alluring one of the soldiers, Captain Daniel Keily. She extracted substantial information from him and through her slave Eliza Hopewell transferred those to the Confederate soldiers.
    • When her first espionage effort was exposed, she was captured and warned of facing a possible death sentence. Instead of panicking she comprehended that she required alternate and better techniques of communication.
    • She resolved to give her service in the South and became an informer of General P.G.T. Beauregard and General Stonewall Jackson of the Confederate passing on information and also medical supplies.
    • Eventually her whereabouts and functioning was publicized by the press who gave her the epithets “Cleopatra of the Secession”, “Rebel Joan of Arc", “Siren of the Shenandoah" and “La Belle Rebelle" for her courage and zeal. The quickly acquired celebrity status however landed her in confinement but she was acquitted after a week when she resumed her espionage work.
    • On one of the evenings in May 1862, while Union General James Shields and his staff discussed among themselves in a local hotel, she took cover in a closet to secretly overhear their conversation. She came to know that the general has orders to move east from Front Royal, Virginia. Overcoming Union lines and carrying fake documents to deceive the sentries she rode that night and conveyed the information to Confederate Colonel Turner Ashby.
    • On July 29, 1862 she was incarcerated and sent to Washington, D.C. at the ‘Old Capitol Prison’. Following an inquiry on August 7, she was kept in confinement and later freed on August 29, in an exchange deal at Fort Monroe.
    • Next year she was again arrested and kept behind bars for five months.
    • In May 1864, while she was on her way to England to courier Confederate documents there, her ship was intercepted by the naval ship of the Union which led to her arrest with charges of espionage.
    • There she fell in love with Samuel Hardinge, a Union officer and one of her incarcerators. The relationship, that culminated into marriage and blessed them with a daughter, also made Samuel Hardinge serve an imprisonment term for helping Belle Boyd.
    • She moved to England in 1864 and began working as an actress. She also ventured into writing about her adventures during the war.
    • In 1865 she wrote ‘Belle Boyd, in Camp and Prison’, a memoir where she also mentioned her husband Hardinge’s contributions.
    • Her debut stage performance ‘The Lady of Lyons’ happened in Manchester in 1866. Thereafter she moved back to the US where she performed in ‘The Honeymoon’ in New York in 1868 and took retirement the next year.
    • In 1886 after a long gap, owing to financial difficulties, she made a comeback to the stage.
    • The later stage of her life, starting from around 1887, saw her touring the United States and giving thrilling lectures about her espionage during the war.
    Major Works
    • On May 23, 1862 she passed on crucial information to the Confederate General Stonewall Jackson in the middle of firing by the Union troops, one of which hit her skirt. The information given by her aided General Stonewall Jackson’s troops in reclaiming the town of Front Royal. The general showed his gratitude through a note sent to her and later conferred her with the posts of captain and honorary aide-de-camp. She also received the ‘Southern Cross of Honor’.
    • Personal Life & Legacy
      • Her first husband Samuel Hardinge died in 1866 and on November 11, 1869 she moved back to the US and the same year she married ex-Union officer John Swainston Hammond. The couple had four children and they divorced in 1884.
      • In 1885 she married Nathaniel Rue High, a young actor.
      • On June 11, 1900, she succumbed to a heart attack in Kilbourne City (at present Wisconsin Dells) in Wisconsin. She went there to address members of a GAR post while on a tour in the United States. She was interred in Wisconsin at the ‘Spring Grove Cemetery’.

रविवार, २२ जानेवारी, २०१७

शहनाज हुसैन

शहनाज हुसैन 

कार्य/व्यवसाय/पद: ब्यूटी एक्सपर्ट और उद्यमी – शहनाज हर्बल्स की सीईओ
मशहूर ब्यूटी एक्सपर्ट शहनाज हुसैन भारत की सबसे सफल महिला उद्यमियों में से एक हैं और उनकी कम्पनी शहनाज हुसैन हर्बल्स दुनिया भर में हर्बल प्रोडक्ट्स बनाने वाली सबसे बड़ी कम्पनियों में से एक है। उनकी कम्पनी सौन्दर्य और सेहत के लिये करीब चार सौ उत्पाद बनाती है और उन्हें करीब-करीब पूरी दुनिया में बेचती है। स्पष्टवादी विचार और आकर्षक रूप के लिए जानी जाने वाली शहनाज हुसैन ने अपना दबदबा फ्रेंचाइजी सिस्टम से बनाया। इस कारण उनके हर्बल उत्पाद तेजी से दुनिया में फैशन और प्रतिष्ठा का परिचायक बन गए।
प्रारंभिक जीवन
शहनाज हुसैन का जन्म वर्ष 1940 में एक संभ्रांत और प्रख्यात परिवार में हुआ। वो भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एन यू बैग की पुत्री हैं। उनके दादा मीर यार जंग हैदराबाद के मुख्य न्यायाधीश और नागपुर के गवर्नर थे। उनकी सगाई मात्र 14 साल की उम्र में हो गई और 16 साल की उम्र में शादी भी हो गयी और उसी साल वह एक बच्चे की मां भी बनीं। घरेलू जीवन में ऊब जाने पर ब्यूटिशियन बनने की जिद पर पति और पिता दोनों ने उनका साथ दिया| इसके बाद उन्होंने  दुनिया के कई ब्यूटी स्कूलों में पढ़ाई की।
कैरियर
आधुनिक सौंदर्य प्रसाधनो में प्रायः रसायनों का उपयोग होता है जिनका शरीर पर बुरा असर पड़ता है। इसे देखते हुये उन्होंने आयुर्वेद का अध्ययन किया और इसके बाद लगभग दस वर्षों तक लंदन, पेरिस, न्यूयॉर्क और कॉपनहेगन के प्रति‌ष्ठित पॉर्लरों में प्राकृतिक सौंदर्य प्रणाली का प्रशिक्षण लिया। वर्ष 1977 में उन्होंने दिल्ली में अपने घर से ही शहनाज हुसैन हर्बल्स की शुरुआत की। उन्हें शुरुआत से ही बहुत जबर्दस्त समर्थन मिला और वे अगले छह महीनों के लिए बुक हो गईं। पहले वे रोगी विशेष के लिये उपचार तैयार करती लेकिन जल्दी ही मुहांसे, झाई, त्वचा में नमी की कमी और एलोपेसिया यानि बालों को गिरने से रोकने के लिये विभिन्न उत्पाद बाजार में पेश किये।
नब्बे का दशक आते-आते शहनाज के उत्पादों को इतना पसंद किया जाने लगा कि वे देश-दुनिया के सभी बड़े स्टोर्स पर बिकने लगे। सत्तर के दशक में उन्होंने सौन्दर्य विशेषज्ञों के वैश्विक सम्मेलन सिडेस्को में देश की नुमाइंदगी की और उन्हें एक दिन के लिये  इस सम्मेलन की अध्यक्षता करने का मौका भी मिला| इस मौके का लाभ उठाते हुये उन्होंने पूरी दुनिया का ध्यान आयुर्वेद की ओर खींचने का प्रयास किया।
धीर॓-धीर॓ दुनिया भर में उनके सौंदर्य उत्पादों का डंका बजने लगा और लंदन के हैरोड्स से लेकर दुबई के सुल्तान स्टोर्स तक सब उनके उत्पाद बेचने के लिये तत्पर रहने लगे। उन्होंने अपने कारोबार को बढ़ाने के लिये फ्रेंचाइजी के तहत भारत और विदेशों में अपने एक्सक्लूसिव स्टोर्स खोले लेकिन गुणवत्ता पर नियंत्रण रखने के लिये वे अपने सभी फ्रेंचाइजी मालिकों को पहले प्रशिक्षण देतीं।
भारत में सौंदर्य चिकित्सा के क्षेत्र में अंतररा‌ष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षण संस्थानों की आवश्यकता महसूस करते हुये शहनाज ने ‘वूमैन्स वर्ल्ड इंटरनेशनल’ की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य शारीरिक संरचना, सौंदर्य, व्यक्तित्व विकास से लेकर सैलून प्रबंधन तक सभी विषयों पर प्रशिक्षण देना था। इसके बाद शहनाज़ ने पुरुष सौंदर्य के क्षेत्र में ‘मैन्स वर्ल्ड इंटरनेशनल’ भी शुरू किया।
शहनाज हुसैन हर्बल्स दो आर एंड डी केन्द्रों का संचालन करती है। इसके अलावा दिल्ली के पास दो औषधि उद्यान व फूलों के बाग भी हैं। शहनाज हुसैन हर्बल्स की खास बात यह है की कच्चे माल से लेकर प्रोसेसिंग और पैकेजिंग तक की पूरी प्रक्रिया में गुणवत्ता पर पूरा ध्यान दिया जाता है। इतने उत्पादों और विशाल कारोबार के बावजूद कंपनी कभी भी अपने उत्पादों का विज्ञापन नहीं करती। उनके अनुसार ‘ग्राहक संतोष सबसे बड़ा विज्ञापन है और मौखिक प्रचार ग्राहक के मन में विज्ञापन से भी अधिक भरोसा जगाता है।’
उन्होंने ऐसे उत्पाद बनाये जो कभी सिर्फ देश के आयुर्वेदिक केंद्रों में ही उपलब्ध थे। ये उत्पाद विदेशी स्पा से लेकर हर एक उपभोक्ता के हिसाब से ढल सकते थे| शहनाज हुसैन की कंपनी अब भारत, दुबई और लंदन के साथ-साथ दुनिया के अन्य देशों और शहरों में फैल गयी है। उनके उत्पाद आलीशान स्टोर सेल्फ्रिजेस में बिकते हैं और हार्ले स्ट्रीट में वह क्लीनिक चलाती हैं|
सम्मान और पुरस्कार
सौंदर्य प्रसाधन सामग्री क्षेत्र की प्रमुख उद्यमी शहनाज हुसैन को आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए दुनिया के कई देशों में सम्मानित किया गया है।
  • ब्रिटेन में लायड्स टीएसबी जेवेल अवॉर्ड
  • अमेरिका में ‘लियानार्दो द विंची डायमंड अवॉर्ड’
  • जेनेवा में इंटरनेशनल स्टार अवॉर्ड :गुणवत्ता, हीरा उत्पाद खंड: प्रदान किया गया
  • ‘द आर्क ऑफ़ यूरोप गोल्ड स्टार फॉर क्वालिटी अवार्ड’
  • ‘वन ऑफ़ द लीडिंग वीमेन एन्त्रेप्रेंयूर्स ऑफ़ द वर्ल्ड’
  • ‘द 2000 मिलेनियम मेडल ऑफ़ ऑनर’
  • राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार
  • वीमेन ऑफ़ द डिकेड अवार्ड 1983
  • इमेज इंडिया अवार्ड 1985
  • फिक्की आउटस्टैंडिंग वीमेन ऑफ़ द ईयर अवार्ड 1986

राइट बंधु

राइट बंधुओं ने किया था हवाई जहाज का आविष्कार  

       हवाई जहाज का आविष्कार करने वाले राइट बंधु बचपन से ही   
कल्पनाशील थे और अपनी कल्पनाओं की उड़ान में उन्होंने हवाई जहाज बनाने का सपना देखना शुरू कर दिया था। अमेरिका के हटिंगटन स्थित यूनाइटेड ब्रेदेन चर्च में बिशप के पद पर कार्यरत   
उनके पिता ने बचपन में उन्हें एक खिलौना हेलीकॉप्टर दिया था जिसने दोनों भाइयों को असली का उड़न यंत्र बनाने के लिए प्रेरित किया।  
      कागज, रबर और बांस का बना हुआ यह हेलीकॉप्टर फ्रांस के एयरोनॉटिक विज्ञानी अल्फोंसे पेनाउड के एक अविष्कार पर आधारित था। दोनों में इस खिलौने को लेकर जबर्दस्त उत्सुकता थी। दोनों रात दिन इससे खेलते रहे।... 
       दोनों इससे तब तक खेलते रहे जब तब कि एक दिन यह टूट नहीं गया।  
17 दिसंबर, 1903 को पहली बार पूर्ण नियंत्रित मानव हवाई उड़ान को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाले ओरविल और विल्बुर राइट साइकिल की संरचना को ध्यान में रखकर अलग अलग कल पुर्जा जोड़कर हवाई जहाज का विकास करते रहे। उन्होंने कई बार हवा में उड़ने वाले ग्लाइडर बनाए और अंत में जाकर हवाई जहाज बनाने का उनका सपना सच हुआ।  
     दोनों को मशीनी तकनीक की काफी अच्छी समझ थी जिससे उन्हें हेलीकॉप्टर के निर्माण में मदद मिली। यह कौशल उन्होंने प्रिंटिंग प्रेसों, साइकिलों, मोटरों और दूसरी मशीनों पर लगातार काम करते हुए पाया था। दोनों ने 1900 से 1903 तक लगातार ग्लाइडरों के साथ परीक्षण किया था।  
     राइट बंधुओं को अपने सपनों को साकार करने में उनके परिवार से भी पूरी मदद मिली।  लेखिका पामेला डंकन एडवर्डस ने अपनी किताब ‘द राइट ब्रदर्स’ में लिखा है कि विल्बुर ने कहा,  ‘हम खुशकिस्मत थे कि हमारा पालन पोषण ऐसे वातावरण में हुआ जहां बच्चों को उनकी बौद्धिक रूचियों और उत्सुकताओं की दिशा में काम करने की आजादी मिली हुई थी।’   
     राइट बंधुओं की बात करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में भौतिकशास्त्र के प्रोफेसर अगम कुमार झा ने कहा कि राइट बंधुओं ने हवाई जहाज के निर्माण में वर्षों मेहनत की थी।  वर्तमान में यातायात को सुगम बनाने वाला हवाई जहाज जैसा यंत्र उनकी वर्षों की कड़ी मेहनत का परिणाम है। हवाई जहाज के निर्माण में उन्होंने फ्लूड डायनामिक्स के सिद्धांतों का प्रयोग किया था।  
      झा ने कहा, ‘राइट बंधुओं की कोशिश थी कि किस तरह इस यंत्र को गुरूत्वाकर्षण बल द्वारा नीचे खींचे जाने से बचाया जाए। इसके लिए उन्होंने बार-बार प्रयोग किए।    हवाई जहाज का वजन बार-बार कम किया ताकि हवा इसे खींच ना ले जाए। उन्होंने इसके उड़ने की दिशा सही और संतुलित करने के लिए थ्री एक्सिस कंट्रोल थ्योरी का प्रयोग किया और अंत में सफल रहे।’  

शनिवार, २१ जानेवारी, २०१७

धीरुभाई अंबानी

धीरुभाई अंबानी कि जीवनी


Dhirubhai Ambani – धीरजलाल हीरालाल अंबानी जो ज्यादातर धीरुभाई अंबानी के नाम से जाने जाते है, एक सफल भारतीय व्यवसाय के शक्तिशाली कारोबारी थे. जिन्होंने 1966 में रिलायंस इंडस्ट्रीज की स्थापना की, उन्होंने जिस मेहनत और लगन से तरक्की की है उसी वजह से भारत का हर युवा उनसें प्रेरणा लेता है, धीरुभाई अंबानी ने हमें ये सोचने के लिये प्रेरित किया की जिसमें काबिलियत होती है, फिर चाहे वो किसी भी परिस्तिथि में क्यों ना हो सफलता पा सकता है.

पूरा नाम  – धीरजलाल हीरालाल अंबानी
जन्म      – 28 डिसंबर 1932.
जन्मस्थान –  जूनागढ़  गुजरात.
पिता      – हीरालाल अंबानी
माता      – जमनाबेन अंबानी
विवाह     – कोकिलाबेन
धीरुभाई अंबानी ने जो कंपनी कुछ थोडेसे पैसे के लगत पर खड़ी की थी उस रिलायंस इंडस्ट्रीज में 2012 तक 85000 कर्मचारी हो गये थे और सेंट्रल गवर्नमेंट के पुरे टैक्स में से 5% रिलायंस देती थी. और 2012 में संपत्ति के हिसाब से विश्व की 500 सबसे अमीर और विशाल कंपनियों में रिलायंस को भी शामिल किया गया था. धीरुभाई अंबानी को सन्डे टाइम्स में एशिया के टॉप 50 व्यापारियों की सूचि में भी शामिल किया गया था. अंबानी ने 1977 में रिलायंस कंपनी को लाया और 2007 तक उनकी संपत्ति 60 बिलियन $ थी, जिसने अंबानी को विश्व का तीसरा सबसे अमीर परिवार बनाया.

वॉरेन बफे

वॉरेन बफे शेयर बाजार का जादूगार

वॉरेन बफे की जीवनी 

वॉरेन बफे का नाम आज दुनिया मैं सबको पता हैं, ये नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं, दुनीया इनको वॉरेन बफे के नाम से कम और शेयर बाजार का खिलाडी, वॉल स्ट्रीट का जादूगर और बर्क़शायर हैथवे (Berkshire Hathaway) का बादशहा इस नाम से ज्यादा जानती है, दुनीया मैं ऐसा कोई भी अखबार, टी. वी. चैनेल नहीं होगा जिसमे वॉरेन बफे की चर्चा नहीं होती होंगी.
2008 तक, अनुमानतः 62 अरब U.S डॉलर  की कुल संपत्ति (Net Worth) के कारण फ़ोर्ब्स (Forbes) द्वारा उन्हें दुनिया का सबसे अमीर आदमी (Richest person in the world) आंका गया था।
बल्कि दुनिया मैं वो अरबपति होने के वजह से इतने ज्यादा चर्चा मैं नहीं रहे, जितनेकी, अरबपति होने के बावजूद उनकी जो जीवन शेली हैं उसकी वजह से वो चर्चा मैं रहे, बफे दुनिया के उन सभी अमीरों से हर मायने मैं अलग हैं, कारोबार की पूरी तरह से समाज रखने वाले बफे मैं कई खूबिया हैं जो उनके नाम को एक अलग पहचान देती हैं.
सबसे बड़ी बात ये हैं की बफे ने अपनी कुल संपति का लगभग 85% हिस्सा Bill Gates की Bill & Melinda Gates Foundation को दान मैं देकर इतिहास रच दिया ओर दुनिया का सबसे बड़े दानशुर बन गए….
बफे के पिता शेयर बाजार मैं कारोबारी थे, बफे ने 11 साल की उम्र मैं अपने पिता के साथ शेयर बाजार मैं अपने कारोबारी जीवन की शुरवात की, बफेट नें 13 साल की उम्र मैं अपना पहला आयकर विवरण दायर किया और अपनी साईकिल के ३५ डालर को एक व्यय के रूप में घाटा दिया.
15 साल की उम्र मैं High School अंतिम वर्ष में बफेट और उनके एक साथी नें 25 डालर में एक इस्तेमाल की हुई पिनबाल मशीन खरीदी और उसे एक नाइ की दुकान में रख दिया. मात्र कुछ महीनों में उनके पास तीन मशीनें भिन्न भिन्न जगहों पर हो गई थीं।
20 साल उम्र मैं बफेट नें हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में प्रवेश के लिए आवेदन किया था, लेकिन उसे ठुकरा दिया गया था। फिर Warren Buffett  नें कोलंबिया बिजनेस स्कूल (Columbia Business School) में दाखिला लिया क्योंकि उन्हें पता था की बेंजामिन ग्राहम (Benjamin Graham) और डेविड डोड (David Dodd), दो जाने-माने प्रतिभूति विश्लेषक (securities analyst), वहीं पढ़ते हैं। उन्ही गुरु से बफेट नें शेयर बाजार मैं निवेश करने के गुण सिखे.
आज बफेट के पास जीतनी संपति हैं उनकी जीवन शैली उतनी ही सरल हैं, बफेट आज भी उसी घर मैं रहते हैं जो उन्होंने 5 दशक पहले ख़रीदा था, वे अपनी कार खुद चलते हैं, ना तो उनके पास कोई ड्राईवर हैं, ना कोई सुरक्षा गार्ड, वे कभी निजी विमान से यात्रा नहीं करते, वो अपने सभी CEO को साल मैं केवल एक बार पात्र लिखते हैं..
दोस्तों, वॉरेन बफेट की शक्सीयत को समजना या उनके बारे मैं कोई भी एक राय बना पाना शेयर बाजार की तरह ही पेचीदा हैं.
वॉरेन बफेट के कुछ बेहतरीन टिप्स :-
1 “कमाई : कभी भी अकेली आय पर निर्भर न रहे. आय का दूसरा साधन बनाने के लिये निवेश करे.”
2 “सफलता : जब मौके आते है तभी आप कोई काम करते हो. मेरे जीवन में एक ऐसा पल भी आया था जब मेरे पास उपायों का गठरा पड़ा था. लेकिन यदि मुझे अगले हफ्ते कोई उपाय आता है तो ही मै कुछ कर पाउँगा अन्यथा मै कुछ नही कर पाउँगा.”
3 “खर्च : यदि आपको जिसकी जरुरत नही है वो चीज़े आप खरीद रहे हो तो एक दिन आपको जिन चीजो की जरुरत है उस चीजो को बेचना पड़ेगा.”
4 “सेविंग : खर्च करने के बाद जो बचे उसे सेव न करे लेकिन सेव करने के बाद जो बचा उसे खर्च अवश्य करे.”
5 “जोखिम : कभी भी नदी की गहराई को दो पैरो से नही नापना चाहिये.”
6 “निवेश : कभी भी अपने सारे अन्डो को एक ही बास्केट में न डाले.”
7 “उम्मीद : इमानदारी सबसे महंगा तोहफा है. छोटे लोगो से इसकी उम्मीद ना करे.”
8 “इंसानियत : यदि आप इंसानियत के 1 % लकी लोगो में भी शामिल हो, तो आप 99 % लोगो को इंसानियत सिखा सकते हो.”