बुधवार, २५ जानेवारी, २०१७

Galileo Galeli


पूरा नाम :- गेलिलियो गैलिली
जन्म :- 15 फ़रवरी 1564
जन्मस्थान :- इटली
आधुनिक इटली के पीसा नामक शहर में 15 फरवरी 1564 को गेलिलियो गैलिली का जन्म हुआ था। अधिकांश लोग गैलिलियो को एक खगोल विज्ञानी के रूप में याद करते है जिसने दूरबीन में सुधार कर उसे अधिक शक्तिशाली और खगोलीय प्रेक्षणों के लिए उपयुक्त बनाया और साथ की अपने प्रेक्षणों कसे ऐसे चौकानेवाले तथ्य उजागर किये जिससे खगोल विज्ञान को नई दिशा दी और आधुनिक खगोल विज्ञान की नीव रखी।
गेलिलियो गैलिली के बारे में बहुत कम लोग ये जानते होंगे कि खगोल विज्ञानी होने के अलावा वो एक कुशल गणितज्ञ, भौतिकविद और दार्शनिक थे जिसने यूरोप की वैज्ञानिक क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इसलिए गेलिलियो गैलिली को“ आधुनिक खगोल विज्ञानं का जनक” और “आधुनिक भौतिकी का पिता” के रूप में भी सम्बोधित किया जाता है।
गेलिलियो गैलिली ने दर्शन शाश्त्र का भी गहन अध्ययन किया था, साथ ही वो धार्मिक प्रुवृति के भी थे। पर वो अपने प्रयोगों के परिणामो को कैसे नकार सकते थे, जो पुरानी मान्यताओ के विरुद्ध जाते थे और वो इनकी पुरी इमानदारी से व्याख्या करते थे। उनकी चर्च के प्रति निष्ठा के बावजूद उनका ज्ञान और विवेक उन्हें किसी भी पुरानी अवधारणा को बिना प्रयोग और गणित के तराजू में तोले जाने से रोकता था। चर्च ने इसे अपनी अवज्ञा समझा।
पर गेलिलियो गैलिली की अपनी सोच ने मनुष्य की चिन्तन प्रक्रिया में नया मोड ला दिया।
गेलिलियो गैलिली ने आज से बहुत पहले गणित, सैधांतिक भौतिकी और प्रायोगिक भौतिकी में परस्पर संबध को समझ लिया था। परावलय या पैराबोला का अध्ययन करते हुए वो इस निष्कर्ष पर पहुचे थे कि एक समान त्वरण की अवस्था में पृथ्वी पर फेंका कोई पिंड एक परवलयाकार मार्ग में चलकर वापस पृथ्वी पर गिरेगा, बशर्ते हवा में घर्षण का बल अपेक्ष्नीय हो।
यही नही, उन्होंने ये भी कहा कि उनका सिध्दांत जरुरी नही कि किसी ग्रह जैसे पिंड पर लागू हो। उन्हें इस बात का भी ध्यान था कि उनके मापन में घर्षण और अन्य बलों के कारण अवश्य त्रुटिया आई होगी, जो उनके सिद्धांत की सही गणितीय व्याख्या में बाधा उत्पन्न कर रही थी। उनकी इस अंतर्दृष्टि के लिए प्रसिद्ध भौतिकविद आइन्स्टाइन ने उन्हें “आधुनिक विज्ञान का पिता” की पदवी दे डाली।
जिसे हम आपेक्षिकता का सिद्धांत कहते है, उसकी नीव भी गेलिलियो गैलिली ने ही डाली थी। उन्होंने कहा था “भौतिकी के नियम वही रहते है, चाहे कोई पिंड स्थिर हो या समान वेग में एक सरल रेखा में गतिमान। कोई भी अवस्था ना परम स्थिर या परम चल अवस्था हो सकती है”। इसी ने बाद में न्यूटन के नियमो को आधारभूत ढांचा दिया था।
सन 1609 में गेलिलियो गैलिली को दूरबीन के बारे में पता चला जिसका हॉलैंड में अविष्कार हो चुका था। केवल उसका विवरण सुनकर उन्होंने उससे भी कही अधिक परिष्कृत और शक्तिशाली दूरबीन स्वयं बना ली। फिर शुरू हुआ खगोलीय खोजो का एक अदभुद अध्याय। गेलिलियो गैलिली ने चाँद देखा, उसके उबड खाबड़ खड्डे देखे। उन्होंने बृहस्पति ग्रह को अपनी दूरबीन से निहारा, फिर जो उन्होंने देखा और उससे जो निष्कर्ष निकाला, उसने सौरमंडल को ठीक ठीक समझने में बड़ी मदद की।
गेलिलियो गैलिली समझ गये थे कि बृहस्पति ग्रह का अपना अलग संसार है। उसके इर्द गिर्द घूम रहे पिंड अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी की परिक्रमा के लिए बाध्य नही है। तब तक यही माना जता था कि ग्रह और सूर्य सभी पिंड पृथ्वी के परिक्रमा करते है। हालांकि निकोलस कोपरनिकस गेलिलियो से पहले ही ये कह चुके थे किग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है ना कि पृथ्वी की, लेकिन इसे मानने वाले बहुत कम थे। गेलिलियो की इस खोज से सौरमंडल के सूर्य केन्द्रित सिधांत को बल मिला था।
इसके साथ ही गेलिलियो ने कोपरनिकस के सिधांत को खुला समर्थन देना शुरू कर दिया था। यह बात तत्कालीन वैज्ञानिक और धार्मिक मान्यताओ के विरूद्ध जाती थी गेलिलियो के जीवनकाल में इसे उनकी भूल ही समझा गया। सन 1633 में चर्च ने गेलिलियो को आदेश दिया कि वो सार्वजनिक रूप से कहे कि ये उनकी सबसे बड़ी भूल है। उन्होंने ऐसा ही किया लेकिन फिर भी उनको कारावास दे दिया गया।
बाद में कारागार में रहते हुए उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया तो उन्हें गृह कैद दे दिया गया जिसमे उनको घर पर ही कैद में रखा गया। 8 जनवरी 1642 को गृह कैद झेल रहे गेलिलियो की मृत्यु हो गयी।उनकी मुर्त्यु के कुछ महीनों बाद ही न्यूटन का जन्म हुआ था। इस तरह हम कह सकते है कि उस समय एक युग का अंत और दुसरे नये क्रांतिकारी युग का आरम्भ हुआ था। आज भी हम गेलिलियो के सिद्धांतो को अपनी पाठ्यपुस्तको में देख सकते है।

Alexander Graham Bell




एलेग्जेंडर ग्रैहम बेल – Alexander Graham Bell एक स्कॉटिश वैज्ञानिक, खोजकर्ता, इंजिनियर और प्रवर्तक थे जो पहले वास्तविक टेलीफोन के अविष्कार के लिये जाने जाते है।
                 टेलीफोन के अविष्कार की कहानी
       एलेग्जेंडर बेल का जन्म 3 मार्च 1847 को स्कॉटलैंड के एडिनबर्घ में हुआ था। उनका पारिवारिक घर 16 साउथ शेर्लोट स्ट्रीट में था और वहाँ एलेग्जेंडर के जन्म को लेकर कयी तरह के शिलालेख भी मौजूद है। उनके पिता प्रोफेसर एलेग्जेंडर मेलविल्ले बेल स्वरवैज्ञानिक और उनकी माता एलिजा ग्रेस थी। उनका जन्म एलेग्जेंडर बेल के नाम से हुई हुआ था और 10 साल की उम्र में अपने पिता से अपने दो भाइयो के मध्य नाम की तरह अपना भी मध्य नाम रखने का निवेदन किया था। उनके 11 वे जन्मदिन पर उनके पिता ने उनका मध्यनाम “ग्रैहम” रहने की उन्हें अनुमति भी दी थी, इसका सुझाव उनके पिता के एक कैनेडियन पारिवारिक दोस्त ने उनके पिता को ही दिया था। उनके परिवार और सहकर्मियों के अनुसार बेल बचपन से ही बहुत होशियार थे।
         बेल के पिता, दादा और भाई वक्तुत्व्कला और भाषणों से संबंधित काम से जुड़े हुए थे और उनकी माँ और पत्नी दोनों ही बहरे थे। बेल लगातार भाषण और बात करने वाले उपकरणों के अविष्कार में लगे रहते थे और ऐसा करने से ही उनके दिमाग को चालना मिलती भी गयी। और इसी वजह से 1876 में टेलीफोन की खोज करने वाले बेल को यूनाइटेड स्टेट के पहले पेटेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया था। बेल ने टेलीफोन का अविष्कार कर विज्ञान की दुनिया का सबसे बेहतरीन और सबसे प्रसिद्ध अविष्कार भी कर दिया था।
टेलीफोन की खोज करने के बाद बेल ने अपने जीवन में और बहुत से अविष्कार भी किये है जिनमे मुख्य रूप से टेलीकम्यूनिकेशन, हीड्रोफ़ोइल और एरोनॉटिक्स शामिल है। नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी में 1898 से 1903 तक उन्होंने वहा रहते हुए सेवा की थी और सोसाइटी के दुसरे प्रेसिडेंट के पद पर कार्यरत रहे।
एलेग्जेंडर ग्रैहम बेल की शिक्षा – Alexander graham bell Education
        युवा बालक के रूप में बेल अपने भाइयो की ही तरह थे, उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही अपने पिता से ही ग्रहण की थी। अल्पायु में ही उन्हें स्कॉटलैंड के एडिनबर्घ की रॉयल हाई स्कूल में डाला गया था और 15 साल की उम्र में उन्होंने वह स्कूल छोड़ दी थी। उस समय उन्होंने पढाई के केवल 4 प्रकार ही पुरे किये थे। उन्हें विज्ञान में बहुत रूचि थी, विशेषतः जीवविज्ञान में, जबकि दुसरे विषयो में वे ज्यादा ध्यान नही देते थे। स्कूल छोड़ने के बाद बेल अपने दादाजी एलेग्जेंडर बेल के साथ रहने के लिये लन्दन चले गये थे। जब बेल अपने दादा के साथ रह रहे थे तभी उनके अंदर पढने के प्रति अपना प्यार जागृत हुए और तभी से वे घंटो तक पढाई करते थे। युवा बेल ने बाद में अपनी पढाई में काफी ध्यान दिया था। उन्होंने अपने युवा छात्र दृढ़ विश्वास के साथ बोलने के लिये काफी कोशिशे भी की थी। और उन्होंने जाना की उनके सभी सहमित्र उन्होंने एक शिक्षक की तरह देखना चाहते है और उनसे सीखना चाहते है। 16 साल की उम्र में ही बेल वेस्टन हाउस अकैडमी, मोरे, स्कॉटलैंड के वक्तृत्वकला और संगीत के शिक्षक भी बने। इसके साथ-साथ वे लैटिन और ग्रीक के विद्यार्थी भी थे। इसके बाद बेल ने एडिनबर्घ यूनिवर्सिटी भी जाना शुरू किया, और वही अपने भाई मेलविल्ले के साथ रहने लगे थे। 1868 में अपने परिवार के साथ कनाडा शिफ्ट होने से पहले बेल ने अपनी मेट्रिक की पढाई पूरी कर ली थी और फिर उन्होंने लन्दन यूनिवर्सिटी में एडमिशन भी ले लिया था।
एलेग्जेंडर ग्रैहम बेल का पहला अविष्कार – Alexander graham bell first invention as a child
         एक बच्चे के रूप में बेल ने इस दुनिया की प्राकृतिक जिज्ञासा को प्रदर्शित किया था और अल्पायु में ही वानस्पतिक नमूनों को इकट्टा कर उनपर प्रयोग करते रहते थे। उनका सबसे अच्छा दोस्त बेन हेर्डमैन था, जो उनका पडोसी भी था और उनके परिवार की एक फ्लौर मिल भी थी। बेल हमेशा अपने दोस्त से पूछा करते थे की मिल में किन-किन चीजो की जरुरत पड़ती है। तब उनका दोस्त कहता था की कामगारों की सहायता से गेहू का भूसा बनाया जाता है और उसे पिसा जाता है। 12 साल की उम्र में बेल ने घर पर ही घुमने वाले दो कठोर पहियों को जोड़कर, (जिनके बिच घर्षण हो सके) एक ऐसी मशीन बनायी जिससे गेहू को आसानी से पिसा जा सकता था। उनकी इस मशीन का उपयोग कयी सालो तक होता रहा। बदले में बेन के पिता जॉन हेर्डमैन ने दोनों बच्चो को खोज करने के लिये एक वर्कशॉप भी उपलब्ध करवायी थी।

एलेग्जेंडर ग्रैहम बेल के अविष्कार 

बाद में उन्होंने फ़ोनोंऑटोग्राफ पर प्रयोग करना शुरू किया, एक ऐसी मशीन जो स्वर की लहरों को रुपरेखा दी सके। इसी साल की गर्मियों में उन्होंने टेलेफोन बनाने की योजना भी बनायी। इसके बाद उन्होंने अपने असिस्टेंट थॉमस वाटसन को भी काम पर रख लिया था।
2 जून 1875 को बेल ने टेलीफोन पर चल रहे अपने काम को सिद्ध किया।
इसके बाद वाटसन ने बेल के फ़ोनोंऑटोग्राफ में लगी धातु की एक नलिका को खिंचा। अचानक हुई इस घटना से यह भी पता चला की टेलीफोन से हम ध्वनि को भी स्थानांतरित कर सकते है।
7 मार्च 1876 को बेल में अपने विचारो का पेटेंट हासिल किया।
बेल को यूनाइटेड स्टेट पेटेंट ऑफिस पेटेंट नंबर 174,465 मिला। इससे उनके विचारो को भी कॉपी नही कर सकता था और वे आसानी से टेलेग्राफी तरंगो से मशीन से आवाज को स्थानांतरित कर सकते थे।
3 अगस्त 1876 को उन्होंने पहला लंबी दुरी का कॉल लगाया।
इसके बाद बेल को दूर के किसी ब्रन्तफोर्ड गाँव से एक ध्वनि-सन्देश भी मिला, यह सन्देश तक़रीबन 4 मिल दूर से आया था। इस घटना के बाद बेल ने अपनी योजनाओ को लोगो के सामने बोलना शुरू किया और अपनी खोजो को सार्वजानिक रूप से जाहिर भी किया।
11 जुलाई 1877 को बेल ने पहली टेलेफोन कंपनी की स्थापना की।
बेल के टेलीफोन कंपनी की स्थापना हुई। इसी साल बेल ने कैम्ब्रिज के मबेल हब्बार्ड से शादी की। लेकिन अभी भी उनकी कमाई का जरिया पढाना ही था क्योकि उस समय टेलीफोन उनके लिए ज्यादा लाभदायी नही था।
1881 को बेल ने दुसरे कयी अविष्कार भी किये।
बेल ने फोनोग्राफ, मेटल डिटेक्टर, मेटल जैकेट की भी खोज की और साथ ही ऑडियोमीटर की भी खोज की ताकि लोगो को सुनने में परेशानी ना हो, इसके बाद उनके नाम पर 18 पेटेंट दर्ज किये गए। उनके अविष्कारों को देखते हुए उन्हें बहुत से सम्मानों और पुरस्कारों से नवाजा भी गया था और आज भी उन्हें कयी पुरस्कार दिये जाते है।
1897 में बेल प्रसिद्ध हुए और बहुत सी संस्थाओ में भी उन्हें शामिल किया गया।
25 जनवरी 1915 को बेल ने पहला ट्रांस-अटलांटिक फ़ोन कॉल लगाया।
पहली बार बेल ने उपमहाद्वीप के बाहर से भी वाटसन को कॉल लगाया। इस कॉल के 38 साल पहले, बेल और वाटसन ने फ़ोन पर बात की थी। लेकिन यह कॉल उस फ़ोन से काफी बेहतर था और आवाज भी साफ़ थी।
एलेग्जेंडर ग्रैहम बेल की मृत्यु – Alexander Graham Bell Death
2 अगस्त 1922 को 75 साल की उम्र में अपनी व्यक्तिगत जगह बेंन भ्रेअघ, नोवा स्कॉटिया में डायबिटीज की वजह से उनकी मृत्यु हुई थी। बेल एनीमिया से भी ग्रसित थे। आखरी बार उन्होंने रात को 2.00 बजे अपनी माउंटेन एस्टेट के दर्शन किये थे। लम्बी बीमारी के बाद उनकी पत्नी मबेल ने उनके गानों में गुनगुनाते हुए कहा था, “मुझे छोड़कर मत जाओ।” जवाब में बेल ने “नहीं….” कहा और कुछ ही समय बाद उनकी मृत्यु भी हो गयी थी।
अंतिम यात्रा में आये महेमान जीन मैकडोनाल्ड ने एक शोकगीत भी गाया था, –
विशाल और तारो से भरे आकाश के निचे,
कब्र खोदो और मुझे मरने दो,
मुझे ख़ुशी है की मै अपनी इच्छा से मरा,
और मुझे अपनी इच्छा से ही कब्र में डाला जा रहा है।
बेल की अंतिम यात्रा को सम्मान देते हुए उत्तरी अमेरिका उपमहाद्वीप के सभी फ़ोन को उनके सम्मान में साइलेंट पर रखा गया था, वे एक ऐसे अविष्कारक थे जिन्होंने अपने अविष्कार से लाखो मील दूर रह रहे इंसान को भी जोड़ा था।

Louis Pasteur

1. प्रस्तावना ।
2. जीवन परिचय एव उपलथियां ।
3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

19वीं शताब्दी के जिन महान वैज्ञानिकों ने निष्काम भाव से मानवता की सेवा में अपना जीवन समर्पित किया, उनमें से एक थे-लुई पाश्चर । लुई पाश्चर ने अपनी महान् वैज्ञानिक खोजों के द्वारा बीमारी के दौरान घाव उत्पन्न होने की स्थिति में असहनीय पीड़ा होती है, उससे मुक्ति दिल एक बड़ी मानव सेवा ही की थी ।

2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां:

सुई पाश्चर का जन्म 27 दिसम्बर सन् 1822 को फ्रांस के डोल नामक स्थान में मजदूर परिवार में हुआ था । उनके   चमड़े के साधारण व्यवसायी थे । उनके पिता की इच्छा थी कि उनका पुत्र पढ़-लिखकर कोई महान् आदमी बने ।
वे उसकी पढ़ाई के लिए कर्ज का बोझ भी उठाना चाहते थे । पिता के साथ काम में हाथ बंटाते हुए लुई ने अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए अरबोय की एक पाठशाला में प्रवेश ले लिया, किन्तु वहा अध्यापकों द्वारा पढ़ाई गयी विद्या उनकी समझ से बाहर थी ।
उन्हें मन्दबुद्धि और बुद्ध कहकर चिढाया जाता था । अध्यापकों की उपेक्षा से दुखी होकर लुई ने विद्यालयीन पढ़ाई तो छोड़ दी, किन्तु उन्होंने कुछ ऐसा करने की सोवी, जिससे सारा संसार उन्हें बुद्ध नहीं, कुशाग्र बुद्धि मानकर सम्मानित करे ।
पिता द्वारा जोर-जबरदस्ती करने पर वे उच्च शिक्षा हेतु पेरिस गये और वहीं पर वैसाको के एक कॉलेज में अध्ययन करने लगे । उनकी विशेष रुचि रसायन शास्त्र   में  थी । वे रसायन शास्त्र के विद्वान् डॉ॰ ड्‌यूमा से विशेष प्रभावित थे ।
इकोलनारमेल कॉलेज से उपाधि ग्रहण कर पाश्चर ने 26 वर्ष की अवस्था में रसायन की बजाय भौतिक विज्ञान पढ़ाना प्रारम्भ किया । बाधाओं को पार करते हुए वे विज्ञान विभाग के अध्यक्ष बन गये । इस पद को स्वीकारने के बाद उन्होंने अनुसन्धान कार्य प्रारम्भ कर दिया ।
सबसे पहले अनुसन्धान करते हुए उन्होंने इमली के अस्ल से अंगूर का अग्ल बनाया । किन्तु उनकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण खोज ”विषैले जन्तुओं-पशुओं द्वारा काटे जाने पर उनके विष से मानव के जीवन की रक्षा करनी थी ।”
चाहे कुत्ते के काटने के बाद रेबीज का टीका बनाना हो या फिर किसी जख्म के सड़ने और उसमें कीड़े पड़ने पर अपने उपचार की विधि द्वारा उसकी सफल चिकित्सा करने का कार्य हो, लुई पाश्चर ने उन्हीं कार्यो गे अपने प्रयोगों द्वारा सफलता पायी ।
रेशम के कीड़ों के रोग की रोकथाम के लिए उन्होंने 6 वर्षो तक इतने प्रयास किये कि वे स्वयं अस्वस्थ हो गये । पागल कुत्तों के काटे जाने पर मनुष्य के इलाज का टीका, हैजा, प्लेग आदि संक्रामक रोगों से रोकथाम के लिए उन्होंने विशेषत: कार्य किया । वह सचमुच एक महान् कार्य था ।

3. उपसंहार:

इस तरह लुई पाश्चर एक सामान्य मानव से महामानव बने । चिकित्सा विज्ञान में उनके इस महायोगदान को हमेशा याद रखा जायेगा ।

Thomas Alva Edison


प्रारम्भिक जीवन 

थॉमस एडिसन का जन्म ११फरबरी  १८४७ को हुआ था,बचपन से ही इनके अजीवो गरीव कारनामे थे और आज इस इंसान के पूरी दुनिया को अजीवो कारनामो के बारे में पता चल गया है.
कहते है कामयाब इंसान सबसे अलग ही होते है,ऐसे ही थे थॉमस एडिशन.
जब इनका जनम हुआ तोह कुछ सालो बाद इन्होने एक पक्षी को आसमान में उड़ते हुए देखा तोह इन्होने सोचा कि पक्षी कीड़े खाते है इसलिए इन्होने  कीड़ो  का घोल अपने दोस्तों को पिलाने की कोशिश की,ये देखने के लिए की ये अब उडते है क्या.
उसके बाद जब ये स्कूल में थे तब इनके टीचर इनसे बुद्धू ,कम दिमाग का कहते थे ,ऐसा भी सुना है की इन्हे कम दिमाग का होने की वजह से स्कूल से निकाल दिया गया था.
थॉमस एडिसन जब छोटे थे तब इनके घर पर इनके स्कूल से एक लैटर भेझा गया,तब वोह पत्र लेकर अपनी माँ के पास गए और बोले की माँ देखो मुझे स्कूल से एक पत्र आया है,पढो इस पत्र में क्या लिखा है तब उनकी माँ पत्र को खोलकर देखने लगी और बोली की इस पत्र में लिखा है की हम सभी स्कूल वाले आपका बेटा बहुत होशियार है इसलिए हम इसे अपने स्कूल में नहीं पढा सकते,क्योकि हमारे स्कूल में आपके बच्चे को पढाने के लिए अच्छे अध्यापक नहीं है,हमारा स्कूल आपके बच्चे के लिए लायक नहीं है इसलिए हम आपके लड़के को स्कूल से हटाते है.
लेकिन वास्तव में स्कूल से निकाले जाने का कारण कुछ और ही था,उनकी माँ ने उनसे झूठ कहा था.दरहसल अध्यापक ये मानते थे की थॉमस मंदबुद्धि है.

रिसर्च की शुरुआत 

लगभग १० साल की उम्र में इन्होने अपनी पहली प्रयोगशाला खोली और वोह उसमे तरह तरह के रिसर्च करते,रिसर्च करने के लिए बहुत सारी चीजो की जरुरत पड़ती है,और इन चीजो को खरीदने के लिए पैसे की जरुरत पड़ती थी,ये अपने बचपन में पैसे कमाने के लिए ट्रेन में अखबार और सब्जी बेचते थे,और अपने प्रयोगशाला में काम करते थे.
दोस्तों इसी कम दिमाग के व्यक्ति ने दुनिया में ऐसा जलवा फैलाया की इनका जलवा आज भी कायम है
अगर आप ना मानो तोह अँधेरा होने दीजिये ,तोह सिर्फ और सिर्फ इनका ही  जलवा चारो तरफ दीखेगा ,मेरा मतलब जिस बल्ब को हम उपयोग करते है ,इसका अविष्कार इन्होने ही क्या है,एक ऐसा इंसान जिसको कम दिमाग का कहा गया फिर भी उन्होंने दुनिया में ऐसा मुकाम पाया है की शायद ही किसी ने पाया हो ,जब तक ये दुनिया रहेगी ,इनको याद जरूर करेगी.
कुछ time बाद उनकी माँ का स्वर्गवास हो गया और जब थॉमस एडिसन साइंटिस्ट बन गए तब अपने घर की चीजो को देख रहे थे तब उन्हें वोह लैटर मिला उन्होंने उस लैटर को पढा.पर उस पत्र में लिखा था की आपका लड़का बुद्धू है,इसका दिमाग कमजोर है इसलिए हम हमारे स्कूल में आपके बच्चे को नहीं पड़ा सकते.


थॉमस एडिसन अब एक महान साइंटिस्ट बन चुके थे,वाकई में इन्सान के अन्दर ऐसी ऐसी शक्तिया छुपी है अगर इन्सान ने उन शक्तियों को पहचान लिया तोह इन्सान असंभव को भी संभव कर सकता है,थॉमस एडिसन जिसको स्कूल से निकाल दिया गया था,वोह कितना आगे गए.
थॉमस अल्वा एडिसन एक अमेरिकी अविष्कारक और व्यापारी थे। उन्होंने अनेक यंत्र एवम युक्तिया विकसित की जिनसे संसार भर में लोगो के जीवन में भरी बदलाव आये। विद्युत् बल्ब तथा फोनोग्राफ सहित इन्होने हजारो आविष्कार किये। वे भरी मात्रा में उत्पादन के सिद्धांत को व्यवहार में लाने वाले पहले अन्वेषको में से एक थे। इसके अलावा खोज करने के लिए विशाल टीम का सहारा लेने वाले वे पहले अविष्कारक थे। इसलिए उन्हें पहली औद्योगिक अनुसंधान प्रयोगशाला स्थापित करने का श्रेय भी दिया जाता है।
एडिसन एक महान अविष्कारक थे, उनके समय में उन्होंने पुरे US के 1093 पेटेंट्स अपने कब्जे में कर रखे थे, और इसके अलावा यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और जर्मनी में भी उनके कई सारे पेटेंट्स है। उनके इन सभी पेटेंट्स का उनके अविशाकारो पर बहोत प्रभाव पड़ा। उनके पेटेंट्स के साथ ही उनके आविष्कार भी उस समय काफी प्रचलित होने लगे थे, जिनमे इलेक्ट्रिक लाइट और पॉवर यूटिलिटीज, साउंड रिकॉर्डर और मोशन पिक्चर भी शामिल है, जिन्होए बड़ी तेज़ी से पूरी दुनिया में प्रसिद्धि पायी। एडिसन के अविष्कारों में हमें अधिकतर मॉस-कम्युनिकेशन और टेली-कम्युनिकेशन से संबंध दिखाई देने लगता है। इसमें स्टॉक स्टीकर, वोट रिकॉर्ड करने की मशीन, इलेक्ट्रिक कार के लिए बैटरी, इलेक्ट्रिक पॉवर रिकॉर्डर और मोशन पिक्चर भी शामिल है।

उन्होंने जल्दी ही अपने इन अविष्कारों में प्रगति हासिल की और टेलीग्राफी ऑपरेटर में अपना करियर बनाना चाहियें। बाद में एडिसन ने इलेक्ट्रिक पॉवर निर्माण की यंत्रणा को विकसित किया और घर, व्यापार और फैक्ट्री में उसे बाटते रहे – जो आधुनिक दुनिया में एक विशाल अविष्कार के रूप में जाना जाने लगा। ये सब निर्माण करना के लिए उनका पहला स्टेशन न्यू यॉर्क की पर्ल स्ट्रीट में बना।

मंगळवार, २४ जानेवारी, २०१७

Isaac Newton


जन्म:- January 4, 1643, Woolsthorpe-by-Colsterworth, United Kingdom
मृत्यु March 31, 1727, Kensington, London, United Kingdom
SIR ISAAC NEWTON का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता की मृत्यु उनके इस दुनिया में आने से तक़रीबन 3 महीने पहले ही हो गई थी। ISAAC NEWTON काफी कमजोर पैदा हुए थे और बड़ी मुश्किल से ही उन्हें बचा पाया गया था। उनके पिता का नाम भी ISAAC NEWTON ही था और उनकी याद में ISAAC NEWTON को अपने पिता का नाम मिल गया। उनके जन्म के तीन साल बाद उनकी माँ ने दूसरी शादी कर ली। इनके सौतेले पिता को ISAAC NEWTON पसंद नहीं थे इसलिए इन्हें अपने grandparents के पास छोड़ माँ सौतेले पिता के साथ रहने लगी।
ISAAC NEWTON की प्रारंभिक शिक्षा King’s School, Grantham –Lincolnshire में हुई। School के शुरुआती दिनों में Newton पढने में काफी कमजोर student थे। ऐसा कहा जाता है उनकी पढाई में कमजोरी को लेकर उनकी class के बच्चे उन्हें परेशान करते थे। इस बात को लेकर उनका आए दिन अपने साथियों से झगडा होता था। यहाँ तक कि उन्हें school से निकाल भी दिया गया। इस बीच उनके सौतेले पिता की भी मृत्यु हो गई। Newton school छोड़कर अपनी माँ के पास आ गए। उनकी माँ चाहती थी कि Newton अब किसानी करे और घर संभाले। लेकिन Newton का मन खेती-बाडी में नहीं लगता था।
King’s School के headmaster के प्रयासों से Newton को अपनी पढाई खत्म करने के लिए उनकी माँ फिर से school भेजने को राजी हुई। लेकिन इस बार अपने एक साथी student से बदला लेने के लिए Newton ने अच्छे से पढने का दृढ निश्चय कर लिया। धीरे धीरे ISAAC NEWTON अपनी class के सबसे होनहार और होशियार student बन गए।

SIR ISAAC NEWTON college में:

June 1961 में अपने एक अंकल की recommendation पर ISAAC NEWTON को trinity college, Cambridge में admission मिल गया। यहाँ अपनी पढाई के दौरान 1964 में उन्हें scholarship प्रदान की गई। 1965 में ISAAC NEWTON ने generalised binomial theorem की खोज की और एक गणितीय सिद्धांत को विकसित करना शुरू किया जिसे बाद में calculus के नाम से जाना गया। यहाँ से उन्होंने 1965 में B.A. की degree हासिल की। degree हासिल करने के तुरंत बाद प्लेग फेल जाने के कारण university को बंद कर दिया गया।
SIR ISAAC NEWTON अपने घर लौट आए और अगले दो वर्षों तक उन्होंने calculus, optics और law of gravitation के अपने सिद्धांतों को विकसित किया .
अप्रैल 1967 में Newton फिर से Cambridge लौट आए। अक्टूबर में उन्हें Fellow of Trinity College, Cambridge के लिए नामित किया गया। 1670 में newton ने M.A.की degree हासिल की और 1672 में उन्हें Fellow of Royal Society के लिए चुना गया
Newton ने theory of calculus का विकास Cambridge में रहते हुए कर लिया था, लेकिन इसे किसी भी journal में प्रकाशित नहीं करवाया। इसके पीछे बहुत बाद में उन्होंने कारण बताया कि उन्हें लगता था, लोग इन papers को पढ़कर उनका उपहास बनायेंगे। Leibinz नामक व्यक्ति भी उस समय calculus पर काम कर रहे थे और उन्होंने अपने paper 1684 में प्रकाशित कर दिए। जबकि Newton ने 1693 से इसे प्रकाशित करना शुरू किया। दोनों के बीच इस बात को लेकर काफी विवाद रहा जो की 1716 में Leibinz की मौत के बाद समाप्त हुआ। 1711 में ही royal society ने अपनी जांचों के बाद इस बात को स्वीकार कर लिया था कि theory of calculus  के सिद्धांत को Newton द्वारा ही विकसित किया गया है।

Mathematical Achievements of SIR ISAAC Newton:

Newton ने गणितीय क्षेत्र में निम्नलिखित योगदान दिए :
  • Generalized binomial theorem
  • Newton’s identities,
  • Newton’s method,
  • classified cubic plane curves (polynomials of degree three in two variables),
  • Substantial contributions to the theory of finite differences,
  • Use of fractional indices
  • Used geometry to derive solutions to Diophantine equations.
  • Used power series and to revert power series.

Scientific Achievements of SIR ISAAC Newton

  • Optics – Newton ने बताया कि सूर्य का सफ़ेद प्रकाश असल में सफ़ेद ना होकर कुछ रंगों का मिश्रण है। इसके लिए उन्होंने सूर्य की किरणों को प्रिज्म से गुजारा तो देखा जामुनी, नारंगी, पीला, लाल, नीला, हरा और बैंगनी रंग का spectrum बनता है। इसे ही हम इन्द्रधनुष भी कहते हैं, जो हमें बारिश के दिनों में पानी की बूंदों से सूर्ये के प्रकाश के परावर्तित होने के कारण आकाश में दिखाई देता है।
  • Telescope – Newton ने telescope के development में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • Mechanics and Gravitation. Newton ने मैकेनिक्स और गुरुत्व के क्षेत्र में बहुत काम किया। एडमंड हेली की मदद से उन्होंने अपनी फेमस बुक Principa Mathematica प्रकाशित करवाई। Newton ने इसमें three laws of motion को सत्यापित किया और गुरुत्वाकर्षण के नियम को परिभाषित किया। उनके ये नियम आने वाले समय में modern physics के लिए आधारस्तंभ साबित हुए। इसमें उन्होंने हमारे ग्रहों के planetary movements को भी explain किया।
Isaac Newton ने आजीवन विवाह नहीं किया। उन्होंने अपना पूरा जीवन अपनी research और वैज्ञानिक खोजों को ही समर्पित किया। Newton ने बाइबिल पर अपने धार्मिक शोध भी लिखे।
Newton England की संसद के सदस्य भी रहे। England में उन्हें वहां की टकसाल का वार्डन भी नियुक्त किया गया। यहाँ उन्होंने बहुत ही इमानदारी से काम किया। अपनी मौत तक वो इस पद पर बने रहे।
अप्रैल 1705 में England की महारानी ऐनी ने Isaac newton को उनके राजनितिक योगदान के लिए ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में एक शाही यात्रा के दौरान नाइट की उपाधि दी।
Isaac Newton की मृत्यु 31 मार्च 1727 (20 मार्च 1726 – old calendar) को नीद में सोते हुए हुई। उन्हें वेस्टमिंस्टर एब्बे में दफनाया गया।

Dr.A.P.J.Abdul Kalam


हमारे देश के ग्यारहवें राष्ट्रपति, एक ख्याति प्राप्त कुशल वैज्ञानिक, लेखक तथा युवा पीढ़ी के पथ प्रदर्शक, जी हाँ हम बात कर रहे हैं स्वर्गीय श्री ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जी (A.P.J. Abdul Kalam) की, जो न जाने कितने ही लोगों के लिए प्रेरणा (Inspiration) बन गए | ये एक उच्च विचारों वाले व्यक्ति थे जिन्होंने तमिलनाडु के छोटे से गाँव में जन्म लिया था | अपनी कड़ी तपस्या और उच्च सिद्धांतों के कारण ही वे इस मुकाम तक पहुंचे | भारत के हर घर में उनका नाम बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है, यहाँ का हर विद्यार्थी उनको अपना आदर्श (Idol) स्वरूप मानता है | इनके कई कथनों ने युवाओं को एक नई दिशा प्रदान की 
A.P.J. Abdul Kalam का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के छोटे से गाँव में हुआ, जिसका नाम धनुषकोडी है | इस गाँव में वे अपने संयुक्त परिवार के साथ रहते थे | उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी | उनके पिता मछुआरों को नाव किराए पर देते थे तथा उनकी माता गृहिणी थीं | A.P.J. Abdul Kalam साहब ने अपनी शिक्षा का आरम्भ रामेश्वरम के एक प्राथमिक विद्यालय से किया | कलाम साहब ने अपनी पढ़ाई पूरी करने व् घर की आर्थिक सहायता हेतु अख़बार बेचने का कार्य आरम्भ किया |
A.P.J. Abdul Kalam ने बारहवीं रामनाथपुरम में स्थित स्च्वार्त्ज़ मैट्रिकुलेशन स्कूल (Schwartz Higher Secondary School) में सम्पन्न की | तत्पश्चात उन्होंने स्नातक की उपाधि  (Bachelor Degree) प्राप्त करने हेतु सैंट जोसफ कॉलेज (St. Joseph College) में दाखिला लिया जो तिरुचिराप्पल्ली में स्थित है | किन्तु यहाँ उनकी शिक्षा का अंत नहीं हुआ, उन्हें पढने व् सीखने का बहुत शौक था | वह आगे की पढ़ाई हेतु 1955 में मद्रास जा पहुंचे जहां से उन्होंने 1958 में अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की | उनका सपना था कि वह भारतीय वायु सेना में फाइटर प्लेन के चालक यानि पायलट (Pilot) बन सकें, परन्तु यह पूर्ण न हो पाया, पर फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी | इसके पश्चात उन्होंने भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान (DRDO) में प्रवेश किया जहां उन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना का सफल संचालन किया | परन्तु DRDO में अपने कार्यों से संतुष्ट न होने के कारण उन्होंने इसे छोड़ दिया |
A.P.J. Abdul Kalam with Indian Army
इसके पश्चात उन्होंने 1962 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में प्रवेश किया | इसरो (ISRO) में A.P.J. Abdul Kalam ने कई परियोजनाओं का सफलतापूर्वक संचालन किया, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण था उनके द्वारा भारत के पहले उपग्रह “पृथ्वी” जिसे SLV3 भी कहा जा सकता है, का पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित किया जाना | इस कार्य को Dr. A.P.J. Abdul Kalam ने 1980 में बहुत ही मेहनत तथा लगन के साथ संपन्न किया | उनकी इसी सफलता के बाद भारत भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन पाया | इस दौर में वह इसरो (ISRO) में भारत के उपग्रह प्रक्षेपण यान परियोजना के निदेशक के पद पर नियुक्त थे | इसरो के कार्यकाल के दौरान ही उन्होंने और भी उपलब्धियां हासिल कीं जैसे – नासा की यात्रा, प्रसिद्ध वैज्ञानिक राजा रमन्ना के साथ मिलकर भारत का पहला परमाणु परीक्षण, गाइडेड मिसाइल्स को डिज़ाइन करना |
इन सबके पश्चात A.P.J. Abdul Kalam एक सफल तथा ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक (Scientist) बन चुके थे | 1981 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया | 1982 में वह पुन: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के निदेशक के रूप में विद्यमान हुए | अब उन्होंने स्वदेशी लक्ष्य भेदी नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र (गाइडेड मिसाइल्स) की तरफ अपना ध्यान केन्द्रित किया |
Dr. A.P.J. Abdul Kalam को 1990 में फिर पद्म विभूषण से नवाज़ा गया | तत्पश्चात वे 1992 से लेकर 1999 तक के कार्यकाल में रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार के पद पर नियुक्त रहे, साथ ही वह सुरक्षा शोध और विकास विभाग के सचिव भी थे | 1997 में उनका भारत के प्रति योगदान देखते हुए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया | उन्हीं के नेतृत्व में 1998 में भारत ने अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया | कलाम साहब की ही देन है कि भारत आज परमाणु हथियार के निर्माण में सफल हो पाया है | इस दौर में वह भारत के सबसे प्रसिद्ध एवं सफल परमाणु वैज्ञानिक (Nuclear Scientist) थे |
APJ Abdul Kalam Biography in Hindi

2002 में उनके प्रति भारत की जनता में सम्मान देखते हुए, जीवन की उपलब्धियों तथा भारत के प्रति उनका लगाव देखते हुए एन. डी. ए. ने उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया | फलस्वरूप वह चुनाव में विजयी होकर 2002 में भारत के राष्ट्रपति (President) के रूप में हमारे सामने आये | उन्हें “जनता का राष्ट्रपति (People’s President)” कहकर संबोधित किया जाने लगा |
उनके इस कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई सभाएं संबोधित कीं जिनमें उन्होंने भारत के तथा यहाँ रह रहे युवाओं के भविष्य को बेहतर बनाने हेतु बातों पर जोर दिया | यह तो हम सभी जानते हैं कि A.P.J. Abdul Kalam अपनी निजी ज़िंदगी में एक सरल तथा अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे | वे बच्चों से बहुत अधिक स्नेह करते थे, उन्हें हमेशा ऐसी सीख देते थे जो उनके भविष्य को बेहतर बनाने में सहायता करे | वे राजनीतिक व्यक्ति नहीं थे, किन्तु राजनीति में रहकर वे देश के विकास के बारे में सोचते थे | वे जानते थे कि युवाओं का बेहतर विकास ही देश को आगे लेकर जा सकता है | वे चाहते थे कि परमाणु हथियारों के क्षेत्र में भारत एक बड़ी शक्ति के रूप में जाना जाए |
उनका कहना था कि “2000 वर्षों के इतिहास में भारत पर 600 वर्षों तक अन्य लोगों ने शासन किया है। यदि आप विकास चाहते हैं तो देश में शांति की स्थिति होना आवश्यक है और शांति की स्थापना शक्ति से होती है। इसी कारण प्रक्षेपास्त्रों को विकसित किया गया ताकि देश शक्ति सम्पन्न हो।“
A.P.J. Abdul Kalam का राष्ट्रपति कार्यकाल 2007 में समाप्त हुआ | इसके पश्चात वह कई जगहों पर प्रोफेसर (Professor) के तौर पर कार्यरत रहे जैसे- शिलोंग, अहमदाबाद तथा इंदौर के भारतीय प्रबंधन संस्थानों, व् बैंगलोर के भारतीय विज्ञान संस्थान में | उसके बाद वह अन्ना विश्वविद्यालय में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग (Aerospace Engineering) के प्रोफेसर रहे | A.P.J. Abdul Kalam ने भारत के कई अन्य प्रसिद्ध शैक्षिक संस्थानों में भी अपना योगदान दिया |
APJ Abdul Kalam Biography in Hindi
आप में से शायद बहुत कम लोग ये जानते होंगे कि वे गीता और कुरान, दोनों का अनुसरण करते थे | उन्हें भक्ति गीत सुनने का तथा वाद्य यन्त्र बजाने का भी बहुत शौक था | उनका लगाव भारत की संस्कृति (Tradition) के प्रति बहुत अधिक था |
27 जुलाई 2015 को ये “मिसाइल मैन (Missile Man)” हम सब को छोड़ कर चले गए तथा उनका जाना हमारे देश के लिए कभी पूर्ण न होने वाली क्षति (Loss) थी | कलाम साहब की मृत्यु की वजह दिल का दौरा था | यह उस वक़्त हुआ जब वह शिलोंग के भारतीय प्रबंधन संस्थान में एक व्याख्यान (Lecture) दे रहे थे | 28 जुलाई को उन्हें दिल्ली में तथा 29 जुलाई को उन्हें मदुरै में श्रद्धांजलि (Tribute) दी गयी | 30 जुलाई को उन्हें उन्ही के नगर रामेश्वरम के पी करूम्बु ग्राउंड में पूरे सम्मान के साथ दफनाया गया तथा यहाँ उन्हें 3,50,000 से ज्यादा नागरिक श्रध्दांजलि देने पहुंचे | शायद आप जानते नहीं होंगे की गूगल भी उनकी पुण्य तिथि पर अपने मुख्य पृष्ठ (Home Page) पर काला रिबन दिखा रहा था | भारत सरकार ने उनके सम्मान (Honor) में सात दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की |

संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वर्गीय डॉक्टर ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के 79 वें जन्मदिन को विश्व विद्यार्थी दिवस (World Student Day) के रूप में मनाया गया | उन्होंने युवाओं को प्रेरित (Inspire) करने हेतु कई किताबें लिखीं जो बहुत ही प्रभावशाली हैं – विंग्स ऑफ़ फायर, ए मैनिफेस्टो फॉर चेंज, इंस्पायरिंग थॉट्स, इत्यादि | ये किताबें भी कलाम साहब ( Dr. A.P.J. Abdul Kalam) की तरह प्रेरणादायक (Inspirational) हैं |

Albert Einstein


सबसे पीछे रहने वाले एक बालक ने अपने गुरु से पूछा ‘श्रीमान मैं अपनी बुद्धी का विकास कैसे कर सकता हूँ?’
अध्यापक ने कहा – अभ्यास ही सफलता का मूलमंत्र है।
उस बालक ने इसे अपना गुरु मंत्र मान लिया और निश्चय किया कि अभ्यास के बल पर ही मैं एक दिन सबसे आगे बढकर दिखाऊँगा। बाल्यकाल से अध्यापकों द्वारा मंद बुद्धी और अयोग्य कहा जाने वाला ये बालक अपने अभ्यास के बल पर ही विश्व में आज सम्मान के साथ जाना जाता है। इस बालक को दुनिया आइंस्टाइन के नाम से जानती है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि साधारण से साधारण व्यक्ति भी मेहनत, हिम्मत और लगन से सफलता प्राप्त कर सकता है।
आइंस्टाइन का जन्म 14 मार्च 1879 को जर्मनी के यूम (Ulm) नगर में हुआ था। बचपन में उन्हे अपनी मंदबुद्धी बहुत अखरती थी। आगे बढने की चाह हमेशा उनपर हावी रहती थी। पढने में मन नहीं लगता था फिर भी किताब हाँथ से नहीं छोङते थे, मन को समझाते और वापस पढने लगते। कुछ ही समय में अभ्यास का सकारात्मक परिणाम दिखाई देने लगा। शिक्षक भी इस विकास से दंग रह गये। गुरु मंत्र के आधार पर ही आइंस्टाइन अपनी विद्या संपदा को बढाने में सफल रहे। आगे चल कर उन्होने अध्ययन के लिये गणित जैसे जटिल विषय को चुना। उनकी योग्यता का असर इस तरह हुआ कि जब कोई सवाल अध्यापक हल नहीं कर पाते तो वे आइंस्टाइन की मदद लेते थे।
गुरु मंत्र को गाँठ बाँध कर आइंस्टाइन सफलता की सीढी चढते रहे। आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से आगे की पढाई में थोङी समस्या हुई। परन्तु लगन के पक्के आइंस्टाइन को ये समस्या निराश न कर सकी। उन्होने ज्युरिक पॉलिटेक्निक कॉलेज में दाखिला ले लिया। शौक मौज पर वे एक पैसा भी खर्च नहीं करते थे, फिर भी दाखिले के बाद अपने खर्चे को और कम कर दिये थे। उनकी मितव्ययता का एक किस्सा आप सभी से साझा कर रहे हैं।
“ एक बार बहुत तेज बारिश हो रही थी। अल्बर्ट आइंस्टीन अपनी हैट को बगल में दबाए जल्दी-जल्दी घर जा रहे थे। छाता न होने के कारण भीग गये थे। रास्ते में एक सज्जन ने उनसे पूछा कि – “ भाई! तेज बारिश हो रही है, हैट से सिर को ढकने के बजाय तुम उसे कोट में दबाकर चले जा रहे हो। क्या तुम्हारा सिर नहीं भीग रहा है?
आइंस्टीन ने कहा –“भीग तो रहा है परन्तु बाद में सूख जायेगा, लेकिन हैट गीला हुआ तो खराब हो जायेगा। नया हैट खरीदने के लिए न तो मेरे पास न तो पैसे हैं और न ही समय।“
मित्रों, आज जहाँ अधिकांश लोग अपनी कृतिम और भौतिक आवश्यकताओं पर ही ध्यान देते रहते हैं, वे चाहें तो समाज या देश के लिये क्या त्याग कर सकते है,सीमित साधन में भी संसार में महान कार्य किया ज सकता है। आइंस्टीन इसका जीवंत उदाहरण हैं।
ज्युरिक कॉलेज में अपनी कुशाग्र बुद्धी जिसे उन्होने अभ्यास के द्वारा अर्जित किया था, के बल पर जल्दी ही वहाँ के अध्यापकों को प्रभावित कर सके। एक अध्यापक ‘मिकोत्सी’ उनकी स्थीति जानकर आर्थिक मदद भी प्रारंभ कर दिये थे। शिक्षा पूरी होने पर नौकरी के लिये थोङा भटकना पङा तब भी वे निराशा को कभी पास भी फटकने नहीं दिये। बचपन में उनके माता-पिता द्वारा मिली शिक्षा ने उनका मनोबल हमेशा बनाए रखा। उन्होने सिखाया था कि – “एक अज्ञात शक्ति जिसे ईश्वर कहते हैं, संकट के समय उस पर विश्वास करने वाले लोगों की अद्भुत सहायता करती है।“
गुरु का दिया मंत्र और प्रथम गुरु माता-पिता की शिक्षा, आइंस्टीन को प्रतिकूल परिस्थिती में भी आगे बढने के लिये प्रेरित करती रही। उनके विचारों ने एक नई खोज को जन्म दिया जिसे सापेक्षतावाद का सिद्धान्त (Theory of Relativity; E=mc^2) कहते हैं। इस सिद्धानत का प्रकाशन उस समय की प्रसिद्ध पत्रिका “आनलोन डेर फिजिक” में हुआ। पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों और बुद्धीजीवियों पर इस लेख का बहुत गहरा असर हुआ। एक ही रात में आइंस्टीन विश्वविख्यात हो गये। जिन संस्थाओं ने उन्हे अयोग्य कहकर साधारण सी नौकरी देने से मना कर दिया था वे संस्थाएं उन्हे निमंत्रित करने लगी। ज्युरिक विश्वविद्यालय से भी निमंत्रण मिला जहाँ उन्होने अध्यापक का पद स्वीकार कर लिया।
आइंसटाइन ने सापेक्षता के विशेष और सामान्य सिद्धांत सहित कई योगदान दिए। उनके अन्य योगदानों में- सापेक्ष ब्रह्मांड, केशिकीय गति, क्रांतिक उपच्छाया, सांख्यिक मैकेनिक्स की समस्याऍ, अणुओं का ब्राउनियन गति, अणुओं की उत्परिवर्त्तन संभाव्यता, एक अणु वाले गैस का क्वांटम सिद्धांतम, कम विकिरण घनत्व वाले प्रकाश के ऊष्मीय गुण, विकिरण के सिद्धांत, एकीक्रीत क्षेत्र सिद्धांत और भौतिकी का ज्यामितीकरण शामिल है। सन् 1919 में इंग्लैंड की रॉयल सोसाइटी ने सभी शोधों को सत्य घोषित कर दिया था। जर्मनी में जब हिटलरशाही का युग आया तो इसका प्रकोप आइंस्टाइन पर भी हुआ और यहूदी होने के नाते उन्हे जर्मनी छोङकर अमेरीका के न्यूजर्सी में जाकर रहना पङा। वहाँ के प्रिस्टन कॉलेज में अंत समय तक अपनी सेवाएं देते रहे , और 18 अप्रैल 1955  को स्वर्ग सिधार गए .
ईश्वर के प्रति उनकी अगाध आस्था और प्राथमिक पाठशाला में अध्यापक द्वारा प्राप्त गुरु मंत्र को उन्होने सिद्ध कर दिया। उनका जीवन मानव जाति की चीर संपदा बन गया। उनकी महान विशेषताओं को संसार कभी भी भुला नहीं सकता।
हम इस महान वैज्ञानिक को शत-शत नमन करते हैं.