शनिवार, १८ मार्च, २०१७

Henry Ford के अनमोल विचार


1. विश्व की सबसे आश्चर्यजनक बात यह जानना हैं कि आप वो काम कर सकते हैं, जो आप सोचते थे कि आप नहीं कर पायेंगे।
2. सबसे मुश्किल कार्य है सोचना, शायद यही कारण है कि इसमें इतने कम लोग लगे होते हैंl
3. अगर आप लक्ष्य से ध्यान हटाते हैं, तो आपको वो डरावनी समस्याएँ नजर आएँगी।
4. मुझे विश्वास है कि ईश्वर सब चीजें मैनेज कर रहे हैं और उन्हें मुझसे किसी सलाह की जरुरत नहीं है। ईश्वर के होते हुए, मुझे यकीन है कि अंत में सब अच्छा होगा। तो फिर चिंता करने की क्या बात है।
5. जो कोई भी सीखना छोड़ देता है वो बूढ़ा है, चाहे वो तीस का हो या साठ का। जो कोई भी सीखता रहता है वो जवान है। विश्व की सबसे महान चीज है अपने दीमाग को युवा बनाये रखना।
6. एक-साथ आना एक शुरूआत है; एक साथ रहना उन्नति है; एक साथ काम करना सफलता है।
7. वो एम्प्लायर नहीं होता जो वेतन देता है। एम्प्लोयर्स बस पैसों को संभालते हैं। वो कस्टमर होता है जो वेतन देता है।
8. किसी मनुष्य की महानतम खोजों में से एक, उसके सबसे बड़े आश्चर्यों में से एक, ये जानना है कि वह उस काम को कर सकता है जिसे वो सोचता था कि वो नहीं कर सकता है।
9. जिन्दगी में अनुभवों की एक श्रृंखला है, उनमे से हर एक हमें बड़ा बनाता है, हालांकि कभी-कभी ये महसूस करना कठिन होता है।
10. अगर हर कोई साथ में आगे बढ़ रहा है तो सफलता खुद अपना ख्याल रख लेती है।
हेनरी फोर्ड
11. जब सब कुछ आपके खिलाफ जा रहा हो तो याद रखिये हवाई जहाज हवा के विरुद्ध उड़ान भरता है उसके साथ नहीं।
12. आप इस पर अपनी प्रतिष्ठा नहीं बना सकते कि आप क्या करने जा रहे हैं।
13. मेरा सबसे अच्छा मित्र वो है जो मेरी हमेशा गलतियाँ ढूंढ़ता है ताकि सर्वश्रेष्ठ बाहर आ सके।
14. मुझे विश्वास हैं कि ईश्वर सब कुछ मैनेज कर रहे हैं, तो फिर चिंता करने की क्या बात हैं|
15. हम जैसे-जैसे जीवन में आगे बढ़ते हैं अपनी क्षमताओं की सीमाओं को जानने लगते हैं।
16. विफलता बस फिर से शुरू करने का अवसर है, इस बार और अधिक समझदारी से।
17. बाधाएं वो डरावनी चीजें है जो आप तब देखते हैं जब आप लक्ष्य से अपनी ध्यान हटा लेते हैं।
18. कुछ भी इतना कठिन नहीं है अगर आप उसे छोटे-छोटे कार्यों में विभाजित कर लें।
19. यदि धन आपकी आजादी की उम्मीद हैं तो वो आपको कभी नहीं मिलेगी। एकमात्र वास्तविक सुरक्षा जो किसी मनुष्य के पास इस दुनिया में होगी वो है ज्ञान, अनुभव, और क्षमता का खजाना।
20. अगर आप समझते हैं कि पैसा ही सब कुछ हैं तो आप गलत हैं। क्योंकि जीवन में अगर कोई वास्तविक सुरक्षा हैं तो वह मनुष्य का ज्ञान, अनुभव और क्षमता का खजाना हैं।
21. एक मार्केट कभी अच्छे उत्पाद से सैचुरेट नहीं होता, लेकिन एक बुरे उत्पाद से ये बहुत जल्दी सैचुरेट हो जाता है।
22. यहां तक कि एक गलती भी एक सार्थक उपलब्धि के लिए आवश्यक हो सकती है।
23. अपराध ख़त्म करने के लिए फांसी की सजा मूल रूप से उतनी ही गलत है जितना कि गरीबी मिटाने के लिए दान देना।
24. ज्यादातर लोग समस्या हल करने का प्रयास करने की बजाये अपना वक्त और उर्जा उसके इर्द-गिर्द बिता देते हैं।
25. अगर सफलता का कोई एक रहस्य है, तो वो इस योग्यता में निहित है कि दुसरे व्यक्ति की बात को समझना और चीजों को उसके और अपने नज़रिए से देख पाना।
26. अगर आप असफल होते हैं, तो यह आपके लिए एक मौका हैं – दूसरी बार अधिक समझदारी के साथ प्रयास करने का।
27. अगर आप साथ आते हैं, तो वह एक शुरुआत हैं। अगर आप साथ रहते हैं, तो वह प्रगति हैं। और यदि आप साथ काम करते हैं, तो वह सफलता हैं।
28. आपके पास पड़ी हर चीज को या तो आप यूज़ कीजिये या लूज कीजिये।
29. अगर आप सोचते हैं कि “मैं कर सकता हूँ” और यदि आप सोचते हैं कि “मैं नहीं कर सकता”। आप दोनों तरह से सही हैं।
30. वो एक तुच्छ व्यवसाय हैं जो केवल पैसा बनाना जानता हैं।
31. आपके द्वारा की गयी गलती भी आपके लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जरूरी हो सकती हैं।
हेनरी फोर्ड

शुक्रवार, १७ मार्च, २०१७


असम्भव किन्तु सत्य – गोवा के बोम जीसस चर्च में 460 सालों से जीवित है एक मृत शरीर

किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके मृत शरीर का शीघ्र-अतिशीघ्र अंतिम संस्कार कर दिया जाता है, ताकि शरीर सडऩे की प्रक्रिया प्रारंभ न हो और बदबू न आए। पुरानी कुछ सभय्ताओ में शव को संरक्षित करके ममी बना दी जाती थी ताकि शव सदियो तक खराब ना हो। लेकिन क्या यह सम्भव है कि बिना संरक्षित किए कोई शव सदियो तक वेसा ही तरोताजा बना रहे ? विज्ञान के नजरिये से तो ऐसा सम्भव नहीं है।  लेकिन इस संसार में बहुत सी ऐसी घटनाये है जहा विज्ञान के तर्क फेल हो जाते है।  ऐसा ही कुछ ओल्ड गोवा के ‘बेसिलिका ऑव बोम जीसस’ (Basilica of  Bom Jesus ) चर्च में रखे संत फ्रांसिस जेवियर ( St Francis Xavier) के मृत शारीर के साथ है।  यह जानकर आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि यह शव विगत 460 वर्षों से बिना किसी लेप या मसाले के आज भी एकदम तरोताजा है।

संत फ्रांसिस जेवियर का मृत शारीर

जी हां! यह बिल्कुल सच है कि ओल्ड गोवा के ‘बेसिलिका ऑव बोम जीसस’ (Basilica of  Bom Jesus )में रखा हुआ, संत फ्रांसिस जेवियर ( St Francis Xavier) का मृत शरीर आज भी सामान्य अवस्था में रखा है। विज्ञान की इतनी प्रगति के बाद भी इस रहस्य को पता लगाने में वैज्ञानिक असफल रहे हैं। संत का शरीर यथावत रहना, आधुनिक विज्ञान के लिए चुनौती से कम नहीं है।

संत फ्रांसिस जेवियर (St Francis Xavier) :-
कैथोलिक संप्रदाय के लोग संत फ्रांसिस जेवियर (St Francis Xavier) का नाम आदर और सम्मान से लेते हैं। संत का जन्म स्पेन के एक राजघराने में हुआ था और उनका वास्तविक नाम ‘फ्रांसिस्को द जेवियर जासूस था, लेकिन उन्होंने घर त्यागकर कैथोलिक धर्म का प्रचार करने का दृढ़ निश्चय कर लिया और धर्म प्रचारक होने के कारण उनका नाम संत फ्रांसिस हो गया। संत फ्रांसिस जेवियर वे अलौकिक चमत्कारी शक्तियों के कारण विख्यात हो गए। गोवा की राजधानी पणजी से दस किलोमीटर दूर ओल्ड गोवा है, जिसे कालांतर में राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। उस समय इसे ‘पूर्व का वेनिस’ कहा जाता था। इस नगर से संत का गहरा लगाव था और उन्होंने यहीं अपनी शरण स्थली बना ली।

संत फ्रांसिस जेवियर

रोम के पोप का प्रतिनिधि होने के कारण उन्होंने धर्म प्रचार का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया। उन्होंने पूर्व की जोखिम भरी समुद्री यात्रा 1551 से आरंभ की। इस यात्रा के दौरान वे  मोजाविक, मालिंदी (केन्या), सोक्रेता होते हुए गोवा पहुंचे थे। ओल्ड गोवा को अपना स्थायी निवास स्थान बनाकर काफी समय तक आसपास के क्षेत्रों में धर्म प्रचार किया।

बेसिलिका ऑव बोम जीसस चर्च के अंदर का दृश्य
इसी को केंद्र बनाकर उन्होंने कई देशों की यात्रा की और कैथोलिक धर्म का प्रचार किया। प्रचार के दौरान ही संत की मृत्यु 3 दिसंबर, 1552 को सांकियान द्वीप (चीन) में हो गई। बाद में मृत शरीर को कॉफिन में रखकर मलक्का ले जाया गया। अंतिम संस्कार के चार माह बाद उनके शिष्य ने श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए संत के ताबूत को खोला। ताबूत खुलने पर संत के शिष्य भौचक्के रह गए कि संत का शरीर तो यथावत बना है। इसे दैवीय शक्ति का चमत्कार मानकर वह संत के मृत शरीर को उनकी कर्मस्थली गोवा ले आए। सर्वप्रथम संत के मृत शरीर को संत पॉल कॉलेज में रखा गया। इसके बाद, संत के मृत शरीर को वहां से हटाकर 1613 में ‘प्रोफेस्ड हाउस ऑव केम जीसस’ में रखा गया। संत के मृत शरीर को चांदी की एक बड़ी मंजूषा में रखकर ‘बेसिलिका ऑव बोम जीसस’ ( Basilica of  Bom Jesus ) के चैपल’ में प्रतिष्ठित कर दिया गया।
संत फ्रांसिस जेवियर का मृत शारीर
संत के मृत शरीर को कई बार अंग-भंग किया जा चुका है। 1553 में जब एक सेवक उनके मृत शरीर को सिंकियान से मलक्का ले जा रहा था तो जहाज के कप्तान को प्रमाण देने के लिए उनके घुटने का मांस नोंच लिया। 1554 में एक पुर्तगाली महिला यात्री ने उनकी एड़ी का मांस काटकर स्मृति के रूप में उनके पवित्र अवशेष अपने साथ पुर्तगाल ले गई। संत के पैर की एड़ी अलग हो गई, जिसे वेसिलिका के ‘ऐक्राइटी’ में एक क्रिस्टल पात्र में रखा गया। 1695 में संत की भुजा के भाग को रोम भेजा गया, जिसे ‘चर्च ऑफ गेसू’ में प्रतिष्ठित किया गया। बाएं हाथ का कुछ हिस्सा 1619 में जापान के ‘जेसुएट प्रॉविंस’ में प्रतिष्ठित किया गया। पेट का कुछ भाग निकालकर विभिन्न स्थानों पर स्मृति अवशेष के लिए भेजा गया। संत के मृत शरीर को लोगों के दर्शनार्थ सर्वप्रथम 1662 में खुले रूप में रखा गया। वर्तमान में समय समय पर संत का मृत शरीर वेसिलिका हॉल के खुले प्लेटफॉर्म पर आमजन के दर्शन के लिए रखा जाता है।

बुधवार, १५ मार्च, २०१७

Mark Zuckerberg


कोई इंसान चाहे तो क्या नही कर सकता और किसी चीज को पुरे दिल से चाहो तो ईश्वर भी आपकी सहायता करता है ऐसी ही कहानी है Mark Zuckerberg की ! उम्र सिर्फ 19 साल थी जब फेसबुक को शुरू किया था आइये जानते हैMark Zuckerberg के पुरे जीवनकाल के बारे में की कैसे एक साधारण लड़का youngest billionaires की list में शामिल हो गया !

संसार की दूसरी सबसे बिजी वेबसाइट :

फेसबुक इंक. एक अमेरिकी मल्टीनेशनल इंटरनेट कॉरपोरेशन है, जो सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट facebook चलाता है इसका मुख्यालय मेनलो पार्क कैलिफ़ोर्निया में है ! facebook सबसे ज्यादा पुरानी नहीं है और इसे फरवरी 2004 में शुरू किया गया था कंपनी की अधिकांश आमदनी विज्ञापनों से होती है ! और 2011 में एशिया मध्य में 3.71 अरब डॉलर थी इसमें 3539 कर्मचारी काम करते थे और 15 देशों में इसके कार्यालय है facebook google के बाद संसार की सबसे व्यस्त वेबसाइट है, लोग हर महीने facebook पर 700 अरब मिनट से भी अधिक समय बिताते है |


पहला आशियाई ऑफिस भारत में : 2010 में इसने एशिया में अपना पहला ऑफिस हैदराबाद, भारत में खोला ! मई 2012 में फेसबुक के 90 करोड सक्रिय सदस्य थे, जिनमें से अधिकतर मोबाइल के जरिए फेसबुक पर जाते हैं ! 2011 में भारत में इसकी 2.3 करोड़ सदस्य है जनवरी 2011 में फेसबुक ने fb.com डोमेन को 85 लाख डॉलर में खरीद लिया ! Facebook की लोकप्रियता को देखते हुए इसके शुरूआती वर्षों पर 2010 में "The Social Network" नामक फिल्म भी बनी !

104 अरब डॉलर की कंपनी : मई 2012 में Facebook का IPO 38 डॉलर प्रति शेयर के भाव पर आया, और इसके आधार पर कंपनी का मूल्य 104 बिलियन डॉलर अंका गया !Facebook की लोकप्रियता की वे कौन से मंत्र है, जिनकी बदौलत इसके संस्थापक मार्क जकरबर्ग संसार के सबसे युवा अरबपति बन गए ! Facebook में ऐसा कौन सा कमाल किया है, जिसकी वजह से Time Magazine ने इसके संस्थापक मार्क जकरबर्ग को 2010 का Person of the year चुना ! सफलता के वह कौनसे फार्मूले है जिन पर चलकर मार्क जकरबर्ग संसार के सबसे अमीर व्यक्तियों की Forbes सूची में 35 वें स्थान पर है और उनके पास 17.5 अरब डॉलर की संपत्ति है ?

बचपन के सबक : मिडिल स्कूल में पढ़ते समय ही मार्क जकरबर्ग को कंप्यूटर का चस्का लग गया था ! उन्होंने Programming के गुर सीखे ! आम तौर पर माता-पिता बच्चों के शौक को ज्यादा महत्व नहीं देते है ! लेकिन मार्क जकरबर्ग के पिता ने एक कंप्यूटर प्रोग्रामर से अपने बेटे को विशेष ट्यूशन दिलवाई !

जब बाकी बचे कंप्यूटर गेम्स खेलते थे तब मार्क जकरबर्ग गेम्स बनाने में जुटे रहते थे ! जाहिर है, बचपन का यह शौक बाद में उनके बड़ा काम आया !

कॉलेज में भी मार्क जकरबर्ग का कंप्यूटर प्रेम जारी रहा ! हार्वर्ड में पढ़ते समय उन्होंने FaceMash नाम से वेबसाइट बनाई, जिसमें उन्होंने दो लड़कों और दो लड़कियों के फोटो दिखाएं फिर उन्होंने वेबसाइट पर आने वाले लोगों से आग्रह किया कि वह ज्यादा आकर्षक फोटो को वोट दें !

पहले ही घंटे में 450 लोगों ने इंटरनेट पर इसे देखा ! वीकेंड पर शुरु हुई इस वेबसाइट की लोकप्रियता से हार्वर्ड का सर्वर बैठ गया ! इसलिए वेबसाइट बंद कर दी गई कई विद्यार्थियों ने शिकायत की कि उनके फोटो का इस्तेमाल उनकी बिना अनुमति के किया गया है ! जुकरबर्ग को माफी मांगनी पड़ी लेकिन इसके बाद उनकी लोकप्रियता और बढ़ गई !

नायाब विचार : मार्क जकरबर्ग के 3 साथी स्टूडेंट्स ने वेबसाइट का नाम हावर्ड कनेक्शन बनाने को कहा था ताकि हावर्ड के स्टूडेंट्स आपस में सम्पर्क कर सकें और जुड़ सकें ! यह सुनकर जकरबर्ग के मन में एक विचार आया कि क्यों ना एक ऐसी वेबसाइट बनाएं, जिस पर पूरी दुनिया में कहीं भी रहने वाले लोग आपस में बात कर सके और अपने फोटो वीडियो आदि दिखा सके !

एक पल में आया यही विचार आगे चलकर Facebook में तब्दील हो गया !

कंपनी की स्थापना: Facebook की स्थापना मार्क जकरबर्ग नाम के अमेरिकी कंप्यूटर प्रोग्रामर और इंटरनेट बिजनेसमैन ने अकेले नहीं की थी उनके 3 साथी Dustin MoskovitzEduardo Saverin
Chris Hughes और Andrew McCollumभी उनके साथ शामिल थे !

वैसे टीम के सबसे अहम सदस्य मार्क जकरबर्ग ही थे क्योंकि विचार भी उन्हीं का था और उन्होंने ही 2 सप्ताह तक प्रोग्रामिंग करके Facebook का पहला संस्करण तैयार किया था अंततः 4 फरवरी 2004 को Facebook वेबसाइट शुरू हो गई !

उस वक्त इसका नाम thefacebook.com था कंपनी के नाम से the तब हटा जब इसने 2005 में Facebook Domain 2 लाख डॉलर में खरीद लिया !


पहले ही वर्ष इसके 10 लाख सदस्य हो गए !
शुरआती संघर्ष : हर कंपनी को शुरुआत में बड़ा संघर्ष
करना पड़ता है ! आमतौर पर शुरुआत में पूंजी की कमी होती है, उस व्यवसाय का अनुभव भी नहीं होता, और लोगों को भरोसा भी नहीं होता आदि !

facebook शुरु करते समय मार्क जकरबर्ग को भी काफी संघर्ष करना पड़ा उनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे, और हार्वर्ड के डोरमिटर रूम में रहकर ही उन्होंने यह काम किया ! उन्होंने 85 डॉलर प्रतिमाह पर एक सर्वर किराए पर लिया, और वेबसाइट शुरू कर दी Facebook शुरू करने के चंद महीनों बाद ही पैसो की समस्या ने उन्हें उन्हें चारों ओर से घेर लिया !

कंपनी चालू रखने के लिए जुकरबर्ग और उनके परिवार को लगभग 85 हजार डॉलर अपनी जेब लगाने पड़े ! जरा सोचें..... इतनी मेहनत के बावजूद पैसा आ नहीं रहा जा रहा था और संघर्ष केवल आर्थिक ही नहीं था facebook वेबसाइट शुरु होने के 6 दिन बाद ही हार्वर्ड के 3 वरिष्ठ विद्यार्थियों ने मार्क जकरबर्ग पर वैचारिक चोरी और धोखाधड़ी का आरोप लगाया उनका आरोप था कि उन्होंने जुकरबर्ग से  HarvardConnection.com नाम की Social Network बनाने को कहा था लेकिन उनका विचार चुराकर जकरबर्ग ने Facebook वेबसाइट शुरू कर दी !

इस आरोप से मार्क जकरबर्ग को काफी तनाव और सामाजिक ताने झेलने पड़े, लेकिन अंततः मामला सुलझ गया !
जैसा मार्क जकरबर्ग ने कहा है  
महत्वपूर्ण मोड़: facebook शौक से व्यवसाय में तब बदला जब 2004 के अंत में पिटर थील में 5 लाख डॉलर का निवेश किया, यह निवेश facebook के लिए इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि पिटर PayPal, YouTube, LinkedIn जैसी शुरुआती कंपनियों में निवेश कर चुके थे !

उनकी सलाह और मार्गदर्शन facebook के बहुत काम आया ! जाहिर है, facebook की प्रगति से थील को भी काफी लाभ हुआ उनका 5 लाख डॉलर के निवेश आज अरबो डॉलर में बदल चुका है !

तो अब बात आती है कि मार्क जकरबर्ग ने ऐसा क्या किया कि आज सफलता उनके कदम चूमती है तो आइए जानते है मार्क जकरबर्ग की सफलता के मंत्र
A Success Story Of Mark Zuckerberg In Hindi


1. जी तोड़ मेहनत करे: पैसे तो विरासत में भी मिल सकता है, लेकिन सफलता नहीं मिल सकते सफलता के लिए तो इंसान को स्वयं मेहनत करनी पड़ती है तभी जाकर वह कामयाबी कि मंजिल पर पहुंचता है !

facebook को सफल बनाने के लिए मार्क जकरबर्ग ने बहुत मेहनत की थी !

मार्क जकरबर्ग के अनमोल विचार

 मैं सोचता हूं कि लोगों के मन में बहुत सी काल्पनिक बातें रहती हैलेकिन क्या आप जानते हैंFacebook की असली कहानी बस इतनी है, की हमने पूरे समय बहुत कड़ी मेहनत की है ! मेरा मतलब है... असली कहानी शायद काफी बोरिंग है, मेरा मतलब है हम साल तक बस अपने कंप्यूटर पर बैठे रहते और कोडिंग करते रहते थे!"

शुक्रवार, १० मार्च, २०१७



Adolf Dassler Adidas Motivational Story

जूते बनाने वाला बना अरबो की कंपनी का मालिक 

जर्मनी की एक जूता फैक्टरी के मजदूर के घर जन्मे एडोल्फ डेसलर उर्फ एडी के विश्वविख्यात कंपनी एडिडास की स्थापना तक का सफर रोचक और उतार-चढ़ाव से भरा हुआ है। उनका बचपन हेरजॉगनआर्च में बीता। हेरजॉग का अर्थ है राजा या ड्यूक और आर्च एक नदी है। इस नदी का एडोल्फ की कहानी से गहरा संबंध है। एडिडास के संस्थापक एडोल्फ, कंज्यूमर प्रॉडक्ट बनाने वाली प्यूमा के संस्थापक रूडोल्फ डेसलर के छोटे भाई थे। 
करीब सवा सौ साल पहले न्यूरेमबर्ग (जर्मनी) के छोटे से कस्बे हरजोजेनोर्च में एक शू फैक्टरी में क्रिस्टन डेसलर नाम का व्यक्ति जूतों की सिलाई करता था। पत्नी पाओलिन वहीं एक छोटी-सी लॉन्ड्री चलाती थीं। इस दंपती के दो बेटे थे- एडोल्फ और रूडोल्फ, जिन्हें प्यार से एडी और रूडी बुलाया जाता था, दोनों भाई अच्छे खिलाड़ी थे। पिता द्वारा बनाए स्पोर्ट्स शू की फिटिंग से एडी कभी खुश नहीं हुआ। वह सोचता था कि ऐसे शूज पहनकर कोई खिलाड़ी मैदान में कैसे अच्छा प्रदर्शन कर सकता है। 
 कम उम्र में एडोल्फ जूते बनाने लगा था। खेल के मैदान में ये शूज एडी को अत्यंत सुविधाजनक लगे तो वह अपने मित्रों के लिए भी शूज बनाने लगा, जिन्हें खूब पसंद किया गया।  इससे पहले कि वे फैक्टरी ज्वाॅइन करते, पहला विश्वयुद्ध शुरू हो गया। एडोल्फ ने जर्मनी की ओर से लड़ाई लड़ी। पहले विश्वयुद्ध से लौटने के बाद उन्होंने अपनी मां की लॉन्ड्री में स्पोर्ट्स शूज बनाना शुरू कर दिया। बतौर सैनिक हार का सामना कर चुके एडोल्फ कुछ ऐसा करना चाहते थे कि हार के कलंक को मिटा सकें। उनके पिता क्रिस्टोफ और ट्रैक शूज बनाने वाले अन्य भाइयों ने इसमें एडोल्फ की मदद की। एक जुलाई 1924 को बड़े भाई रूडोल्फ डेसलर के साथ एडोल्फ ने अपनी “डेसलर ब्रदर्स शू फैक्टरी’ शुरू की। 
लॉन्ड्री में बना पहला कारखाना
अपने बनाए शूज की लोकप्रियता को देखते हुए एडी ने भाई रूडी के साथ स्पोर्ट्स शूज बनाने का कारखाना लगाने का निर्णय लिया, लेकिन पैसे नहीं थे। दोनों भाइयों ने मां की लॉन्ड्री को अपना वर्कशॉप बनाया। यहां बिजली नहीं मिलने पर वे स्टेशनरी साइकिल के पेडल पावर से बिजली पैदा करते थे। इस तरह जब एडी और रूडी ने थोड़ा पैसा कमाया तो 1 जुलाई 1924 को उन्होंने डासलर ब्रदर्स नाम से एक कंपनी का गठन किया, पर राजनीतिक कारणों से अलग हो गए। 
ओलिम्पिक में पहने गए एडिडास शू
1928 के ओलिंपिक्स में डेसलर ने कई खिलाड़ियों के लिए सामान बनाया। इससे उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली। 1936 में बर्लिन में समर ओलिंपिक के दौरान डेसलर ने अमेरिकी एथलीट जेसी ओवेन्स के लिए शूज और अन्य सामान बनाया। जेसी ने एड़ी के जूते पहनकर 100 मीटर, 200 मीटर और 4 गुणा 100 मीटर की रिले रेस में गोल्ड मेडल जीता और लॉन्ग जंप में भी गोल्ड पर कब्जा जमाया। जेसी के इस प्रदर्शन ने एडी के जूतों को भी मशहूर कर दिया। 
इस बीच जर्मनी में हिटलर का उभार हुआ। इसके साथ ही डेसलर बंधुओं के बीच खाई बढ़नी शुरू हो गई। शुरू में दोनों भाइयों ने नाजी पार्टी की सदस्यता ली। इसके बावजूद रूडोल्फ साम्यवादियों के ज्यादा करीब होते गए। वे साम्यवादी दस्ते में शामिल हुए, लेकिन नाजी पार्टी ने उन्हें पकड़ लिया। इधर, नाजी सदस्यता की आड़ में एडी जूते बनाने का काम करते रहे। नाजी पतन के बाद अमेरिकी फौजों ने एडोल्फ को हिरासत में लिया, बाद में छोड़ दिया। 1948 तक दोनों भाइयों के बीच खाई चौड़ी हो गई थी।

रूडोल्फ अपने कस्बे की आर्च नदी के दूसरी तरफ बस गए और उन्होंने अपनी कंपनी प्यूमा शुरू की। नदी के दूसरी ओर एडोल्फ ने अपने निक नेम एडी के आधार पर कंपनी का नया नाम एडिडास रख लिया। इस तरह 1924 की “डेसलर ब्रदर्स शू फैक्टरी’ का नाम 1948 में एडिडास हो गया। दोनों भाइयों की कंपनियों के बीच नदी एक लकीर के रूप में आज भी मौजूद है। 1978 में एडोल्फ के निधन के बाद उनके बेटे हॉर्स्ट और उसकी प|ी कैथ ने एडिडास का प्रबंधन संभाला। 1987 में हॉर्स्ट की मौत के बाद 1989 में एडिडास को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बना दिया गया। आज एडिडास 71 हजार 600 करोड़ रुपए की कंपनी है और 51 हजार कर्मचारी काम करते हैं इसमें।